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दयाल शरण

Others

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दयाल शरण

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अवधारणा

अवधारणा

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ढलते रहे

सुबह-शाम,

फिर नया

फूल कोई

खिल गया

मंद-मंद

खुशबुओं को

इक नया छंद,

मिल गया

छूटती और टूटती

डोरों का

अब क्या हिसाब

जोड़ती इक

पंखुरी से

स्वांसों को

शब्द मिल गया।


पर्त-पर्त भावना

फिर अर्थ में

संवेदना

वक्त पल को

क्या रुका

आवेश को

बल मिल गया।


मैं लिखूं या

तुम लिखो

बस धारणा का

फर्क है

पहुंचे जो 

दिल तक बात

तो अवधारणा

को कल मिल गया।


जोड़ती इक

पंखुरी से

स्वांसों को

शब्द मिल गया

पहुंचे जो 

दिल तक बात

तो अवधारणा

को कल मिल गया।

          

 



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