औरत
औरत
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यहां लोगों की नजरें हैं गंदी
एक औरत के सम्मान को
उंगली उठते ही वो खो दी सब कुछ
अब रह क्या गया पहचान को।
लिबास से गर इज्जत है ढकता
तो ढक दे वह श्मशान को
उंगली उठते ही वो खो दी सब कुछ
अब रह क्या गया पहचान को।
वो जलती रहती है आग में
ताला लगाकर जुबान को
जिम्मेदारियां सर उठा लेती है
झुका देती अपने अरमान को ।
