औरत की ज़िंदगी
औरत की ज़िंदगी
कभी सुबह, कभी शाम है औरत की ज़िंदगी,
नर्म रेशमी एहसास है औरत की ज़िंदगी।
रिश्तों के अजीब चक्रव्यूह में फंसी औरत की ज़िंदगी,
फिर भी सदा अलग-थलग बेजार औरत की ज़िंदगी।
आदि से अंत तक पहेली रही औरत की ज़िंदगी,
पली कहीं सजी कहीं, बे आवाज़, बे ज़ुबान
औरत की ज़िंदगी।
जननी बनी नाम न दे पाई, बेनाम औरत की ज़िंदगी,
सब कुछ लुटाकर भी खाली जाम का गिलास रही
औरत की ज़िंदगी।
अपनों के हाथों छली गई, शोषित सदा औरत की ज़िंदगी,
हर पल छली गई, सिर्फ भोग्या रही औरत की ज़िंदगी।
कसीदे चाहे कितने ही उकेरे हों, तार-तार रही
औरत की ज़िंदगी,
उजली चादर पर बदनुमा दाग सी है औरत की ज़िंदगी।
शोला बनी चिंगारी बनी, कभी राख का ढेर बनी
औरत की ज़िंदगी,
प्यार अपनों का पाकर महकती सदा गई
औरत की ज़िंदगी।
सदियों से एक आस पर पनपती, चलती गई
औरत की ज़िंदगी,
सदा दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती सी पूजित रहे
औरत की ज़िंदगी।
