अस्तित्व
अस्तित्व
कट चूँकि है जड़े मेरी
फिर भी धरा के स्पर्श में
जीवन का संचार है
ले रही है टहनियाँ साँसे
फैल रही है भू में
टटोल रही है
जगह अपने लिए
धीरे -धीरे
मुझे भी जिंदा रख रही है
फूल रही है अब
फल रही है अब
जिववटता से
संघर्ष कर
बचा ली अपना अस्तित्व
खिलखिला रही है
पहले की तरह
बेशक मैं
एक मजबूत साख
औंधे पड़ी हूँ
अब भी जमीन में
पर थामा है अपनी टहनीयों को
और इन साखों ने मुझे
एक दूजे के सहारे
हम अब भी जिंदा है
बेहतर है
हम वृक्ष हैबेशक मैं
एक मजबूत साख
औंधे पड़ी हूँ
अब भी जमीन में
पर थामा है अपनी टहनीयों को
और इन साखों ने मुझे
एक दूजे के सहारे
हम अब भी जिंदा है
मानव कैसे उड़ान भरते ही
टूट जाता है अपनी जड़ों से
या छोड़ देता है वृद्धावस्था में
अपने ही माता पिता को