अस्पताल में मेरी "उम्मीद"
अस्पताल में मेरी "उम्मीद"
अस्पताल में मुझे अहसास हुआ,
मेरी "उम्मीद" जीवित हुई...,
फिर थोड़ी मर गई...,
इसका संपूर्ण मुझे आभास हुआ,
जो कल तक जिंदा लग रही थी
न जाने क्यों आज लेटी दिखी थी
डॉक्टर ने जब खर्च का विवरण सौंपा,
चलता-फिरता मेरा शरीर भी,
उस "उम्मीद" संग बीमार हुआ...!
अस्पताल में मुझे अहसास हुआ,
मेरी "उम्मीद" जीवित हुई...,
फिर थोड़ी मर गई !!
अस्पताल में खर्च का विवरण पढ़ते-पढ़ते,
अचानक मेरी नज़र अस्पताल के दीवार पर पड़ी,
जहां एक स्लोगन अंकित था-
' आपसे हम, आपके ही हम,
आपकी सेवा, ईश्वरीय सेवा,
यही हमारी, कर्तव्य हैं बंधु...! '
उस स्लोगन को पढ़कर एक पल ऐसा लगा था,
मैं पहुँच गया न जाने कब का बैकुण्ठ लोक में...!
पर, जैसे ही इलाज में हुए खर्च का विवरण देखा,
फ़ौरन मुझे एहसास हुआ...,
सब मृगतृष्णा है..., सब मृगतृष्णा है...!
अस्पताल में मुझे अहसास हुआ,
मेरी "उम्मीद" जीवित हुई...,
फिर थोड़ी मर गई !!