अनूठा अनुभव
अनूठा अनुभव
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लगा ना जाने कहां आ गए,
अजब कहानी क्लास की थी।
जाने दो अम्मा के पास
रो-रो यह अरदास दिखी।
पकड़ मैडम की साड़ी का पल्लू
कुछ रो रहे थे जार - जार।
समझ नहीं आया कुछ हमें
शाला आना लगा बेकार।
लेकिन फिर धीरज मैडम ने
सबको था ध र वाया।
किसी को टॉफी से पुसलाया
किसी को खेल-खिलवाया
लगी मशक्कत उनको लेकिन
माहौल जरा फिर बन पाया।
ए, बी, सी का पाठ पढ़ना,
बच्चों को भी समझाया।
आज भी आंखों के आगे,
वह मंजर यूं ही ठहरा है
उन भोले मुस्कुराते चेहरों का
अभी दिल पर पहरा है।
