अन्तरंगता
अन्तरंगता
बात तो इतनी सी होती है
तुम्हारी मूर्ति के समक्ष
समर्पित होकर हम
तुमसे अपनी प्रार्थना सुनाते हैं।
तुममे अपनी श्रद्धा
ब्यक्त करते हैं
और यही तो हुआ था
मैं तुम्हारी मूर्ति के समक्ष
ध्यान से बैठा मैं।
तुम्हारी आँखों मे देख रहा था
और मुझे इतना भर याद है
तुम गर्म भाप सी
पत्थर से पिघलकर
मुझमे समाहित हो गयी थी।
अब जब
तुम्हारा मुझमे होने का
एहसास गहराता जा रहा है
में अकेले
और अकेला होता जा रहा हूँ
तुम्हारी दुनिया में
तुम्हारी फैली हुयी अनगिन कहानियों
और अनगिन मूर्तियों के बीच।
तुम वो तो लगती नही
जैसी कि तुम अपनी कहानियों में हो
न वो रूप न वो भंगिमा
न वो परिवेश
एक नये रूप में
एक नयी कहानी बुनती हुयी
मेरे साथ साथ
इस दुनिया के झंझावात में
निश्चिंत, संयमित
नितांत अकेले
मेरे साथ साथ।
सुना है मैंने
कुछ लोगों को
में भी अच्छा लगता हूँ
अपने नितांत अकेलेपन में।
शायद किसी नयी परम्परा का
शुभारम्भ हो रहा है
तुम्हारी मेरी
इस अन्तरंगता में।
