अनमोल यादें
अनमोल यादें


याद है मुझको वो गुजरा जमाना,
गर्मी की छुटियाँ होना और नानी के गाँव जाना
क्या खूब रोनौक होती थी,
आँगन में हम बच्चों की आवाजें गूँजती थी।।
सुबह-सुबह वो चिड़ियों का चहचाहना,
पके हुए फलों का पेड़ो से फटक से गिर जाना
कहीं आँगन से बर्तनों के धुलने की आवाज़
कहीं गाय-भैसों का चारा चरने की सरसराहट...
मंदिरों से वो भजनों की आवाज़,
गज़ब की संस्कृति गज़ब का एहसास।।
सुबह से रात का कब हो जाना
सब रिश्तेदारों के बीच प्यार भरी
बातों का फ़साना,
वो नाना -नानी का हमें कहानी सुनाना
कहानी के माध्यम से गाँव की
परम्परा समझाना।
वो शादियों में गुड़ और एक
रुपये की पुड़िया का मिलना
वर-वधु पक्ष के बीच सांस्कृतिक
कार्यक्रम का चलना
परंपर
ागत तरीके का परिधान
पहन कर तैयार होना....
वो पत्तल में खाना, वो आम की
चटनी के लिए ललचाना।
मज़ा आता था जब, भागते थे ये क़दम..
दूसरे के खेतों में जाकर तोड़ कर
खाते थे फल हम
वो मासी के साथ जाकर घास काटना,
वो हाथ में चाय की केतली ले कर
नानी-नानी चिल्लाना,
रात में लैंप की रौशनी में चूल्हे के
सामने बैठ कर खाना, खाना....
और नानी का कहना पहले 'नानाजी'
फिर आप सब को है आना....
सोने से पहले वो गरम -गरम दूध मिलना,
उसके बाद सबका रजाई में घुस कर
गाना -बजाना करना।।
आज ये सब अब सपना बन रह गया है,
गाँवों का अब शहरीकरण होने लगा है...
अब रिश्ते भी सिमटते जा रहे है
हर कोई अपने में बिज़ी रहने लगा ।।