अनकहे रिश्ते
अनकहे रिश्ते
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थका-हारा
जब भी होता हूँ निढाल
और टूट कर बिखरने को
होता हूँ, तभी
नाजुक अहसासों की देहरी पर
सुनता हूँ तुम्हारी पदचाप
कैक्टस के फूल-सा
खिल उठता है मन
चंदन-सुरभित होकर
और मैं
हो उठता हूँ तेजोमय-ऊर्जावान
भरपूर नींद से
जागा होऊं जैसे
और तमाम अनकहे रिश्ते
हो उठते हैं रूपायित
लरजती संवेदना के
रूहानी आंगन में ।
