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Ravi Purohit

Others

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Ravi Purohit

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अनकहे रिश्ते

अनकहे रिश्ते

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थका-हारा

जब भी होता हूँ निढाल

और टूट कर बिखरने को

होता हूँ, तभी

नाजुक अहसासों की देहरी पर

सुनता हूँ तुम्हारी पदचाप


कैक्टस के फूल-सा

खिल उठता है मन

चंदन-सुरभित होकर

और मैं

हो उठता हूँ तेजोमय-ऊर्जावान


भरपूर नींद से 

जागा होऊं जैसे

और तमाम अनकहे रिश्ते

हो उठते हैं रूपायित

लरजती संवेदना के

रूहानी आंगन में ।



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