अनकहा किस्सा
अनकहा किस्सा
मुस्कुराहट पे तेरी
मैं भी मुस्कुराता हूँ
मैने कब ख़्वाहिश पाली
कि मैं तुझको पाना चाहता हूँ
न मैं तेरा प्रेमी हूँ
न तू मेरी प्रेयसी है
अंजान डोर में बंधे हैं दोनो
लगती तू मुझ को मेरे जैसी है
तेरी बातों में खो जाता हूँ
तेरी खुशी तेरे ग़म में शामिल हो
जाने क्यों अपने अंदर मैं
अक्सर तुझ को पाता हूँ
तेरा मेरा क्या नाता है
न मैं समझा हूँ न किसी को
ये समझा पाता हूँ
तू अक्सर कहती है
ये एहसास का रिश्ता है
चाहत से ज्यादा तेरा मेरा
ये विश्वास का रिश्ता है
नाम क्या दूँ भला इसको
ये अनकहा रिश्ता है
तेरा मेरा ये अटूट रिश्ता
अंजान लोगों का
अनकहा किस्सा है....
