प्यार की डोर
प्यार की डोर
प्यार की डोर (अनजान सफर)
बाबुल ने कर दी विदाई,
अंजान सफर चली आई
रो रो कर दुनिया लग रही पराई,
बाबुल का घर छोड़ आई।
माता पिता ने बोला, तू अमानत है पराई
अंजान सफर चली आई।
रिश्ते छूटे,बंधन छूटे,
सखियों की भी गलियाँ छूटे
बचपन की बातें याद आई,
अंजान सफर चली आई
चुलबुली बेटी से, बहु बन आई ,
रो रो के हो गई विदाई।
सबने, अलहड़ लड़की से,
जिम्मेदारी की आस लगाई
रो रो के मायके की याद आई ।
मायके को भूला नहीं पाई,
अंजाने सफर चली आई।
सास ससुर लगे अंजाने,
पति की आदत भी ना पहचाने
अपने को सब में ढाल पाई,
अंजान सफर चली आई
ससुर पिता मिले, सास माता ,
नंद बहन लगे, देवर भ्राता
सबको अपना बना पाई।
अंजान सफर चली आई।
कुछ दिनो में अंजाना घर
बना जाना पहचाना
उनके बिना ना, एक
दिन बीता पाई ।
मायके ,ससुराल में
प्यार की डोर बनाई
दोनो परिवार की चिंता
करती आई।
अंजाने सफर को, मिली प्यारी मंज़िल
नारी का जीवन रोशनी से झिलमिल
मायके, ससुराल की करती दुहाई ।
अनजान सफर चली आई।
