अक्षर
अक्षर
अक्षर! यह शब्द भी बना है,
तो तीन अक्षरों से,
पुस्तकों को भी जन्म दिया है, इसी ने।
मनुष्य की गाथा हुई इसी से शुरू,
कहाँ जा सकता है इन्हें ही गुरु।
जैसे बनता है बूँद-बूँद से सागर,
वैसे ही बनता है अक्षरों से
पुस्तकों का महासागर।
जैसे है पृथ्वी के कई भिन्न तत्व,
उसी प्रकार है प्रत्येक अक्षर का
अपना अनोखा महत्त्व।
इनके बिना नहीं होती है भाषा संपन्न,
क्योंकि इनसे ही तो ये बनती है,
भले ही ये हो विभिन्न।
है ये जैसे प्रत्येक भाषा की जड़,
इनके बिना जाएगी कोई भी भाषा उखड़।
जिस प्रकार अपनी जड़ों के बिना,
कितना भी मज़बूत पेड़ जाता है बिखर,
वैसा ही कुछ हो सकता है भाषा के साथ,
यदि उसके पास न हो,
अपने अमूल्य अक्षर!
जिन्होंने किया अनेक शब्दों का निर्माण,
वही तो है, प्रत्येक भाषा की,
आन, बान और शान।