parag mehta
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मेरे लफ्ज़ करते मेरी ख़ातिर ये बयान !!
कुछ पहचानी सी लगी शायद मेरी दास्तां !!
भले ही ये इश्क़ ना हो ज़रा भी आसान !!
मेरे अक्ष निभाएंगे साथ, चाहे मैं रहूं बेज़ुबान !!
कुछ हुआ, कुछ ...
मैं
रुक जाता हूं ...
अरमान!
तू मुझे!
भंवर!!!!!
हवा का ज़ोर !!
कभी कुछ !
चिंगारी !!!
डर !!!