अजनबी
अजनबी
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एक अजनबी
जानें कैसे होंगे वे
जो हमसे दूर रहकर
सात समंदर पार।
लाखों में हार से लगें।
न हुई मुलाकात कभी
ऐसी कोई बात कभी।
वे अजनबी हम अजनबी
न देखे कभी उन्हें हम
रास्ते में टहलते हुये फिर
न जानें क्यों ऐसा लगे,
हमसे दूर रहकर आते
याद करते है फरियाद।
न तस्वीर देखी हमने कभी।
वे अजनबी छुपे रुस्तम।
जहाँ भी हो न दिखते भले
फिर भी आते हो याद नित
हो अजनबी दूर हमसे पर
हर सुबह शाम आ ही जाता
नाम तुम्हारा वो अजनबी।
शब्दों के बोल चाल मीठे
हो अनजान पर हमारे लिये
अजनबी होकर भी लगते
जैसे मीत हो मेरे मन के।