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Laxmi Yadav

Others

4.3  

Laxmi Yadav

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अब प्रतिमा सँवाद करेगी.....

अब प्रतिमा सँवाद करेगी.....

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काल ने कर मे थमा दिया न्याय का तुला, 

मौन रही हर युग मे पर अन्याय से अनभिज्ञ कैसे रहती भला,


पर अब न्याय की प्रतिमा सँवाद करेगी, 


तटस्थ रही, 

देख हरिश्चंद्र की सत्यवादिता को जल भरते क्षुदर् तहाँ, 

ज्ञात मुझे था ये तो स्वप्न का छलावा, 

फिर क्यो इस मृगजल से सतयुग भरमाया, 


पर अब मुखरित हो सँवाद करूँगी, 


निर्छलि सिया छली गयी मायावी मारीच- रावण से, 

लक्ष्मण- रेखा अग्नि- परीक्षा सारी भूल त्रेता युग ने करवाई सीता से, 

सुनयना संग आह मेरी भी निकली थी, 

स्वर्णिम आभा उसकी सुता मिट्टी मे समाई थी, 


संतप्त रही, पर अब प्रतिमा सँवाद करेगी, 


द्वापर मे हुआ नागपाश जब धर्म का, 

भीष्म- विदुर- धृतराष्ट्र पर चला दांव अधर्मी चौपद का, 

पाँचालि संग भरी सभा मे मेरी भी चित्कार उठी थी, 


व्यथित ही सही, अब सँवाद करूँगी उसके चीर हरण का, 


कलियुग मे भी, 


अब भी जनक सुता अयोध्या मे तनिक सुख ना पाती है, 

कौशल्या की सुत सुख की मृगतृष्णा अधूरी रह जाती है, 

तात दशरथ को वनप्रस्थ का पथ दिखलाया जाता है, 

अब तो कुलज्योती ही कुल की सूर्णपंखा बन जाती है, 


इसीलिए अब और ना गांधारी रहूँगी, 

खोल चक्षु की अश्वेत चीर पट्टीका, 

छोड़ युगों की मूकदर्शकता, 


अब तो काल से घंटानाद करूँगी, 


ये प्रतिमा अब सँवाद करेगी।


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