आशीर्वाद
आशीर्वाद
माँ, पिताजी की हँसी से
गूँजता था घर अपना
उसमे छाया अब सन्नाटा
वो पिता की डायरी
वो माँ की खाली कुरसी
अब भी ना जाने क्या
कहती हैं
डायरी में पिता के लिखे
शब्दों को छूकर उनके
स्पर्श का
अहसास पाती हूँ
माँ की दी साड़ी को
पहन कर जाती हूँ
जब आईने के सम्मुख
अपने अक्स में माँ का
चेहरा नज़र आता है
मेरा लिखना पढ़ना मुझे
पिताजी से विरासत में
मिला है
और जो रसोई में अपना
हुनर दिखलाती हूँ
उसमे माँ के हाथ का
स्वाद ही पाती हूँ
भले ही छोड़ गए संसार वे
पर हम सबको स्नेह की
डोरी से बांध गए
आज भी उनका आशीर्वाद
महसूस करती हूँ मैं हर घड़ी
वे वटवृक्ष थे उनकी छाँव
घनेरी थी, आज भी है और
कल भी रहेगी ।।
