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Vijay Kumar parashar "साखी"

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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आख़री तमन्ना

आख़री तमन्ना

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मेरी तो बस एक ही तमन्ना है

इस माटी पर ही मर मिटना है

जब तक चलती रहे सांसे मेरी,

हर सांस से मुझे आग उगलना है

गोली कितनी ही लगे जिस्म पर

तिरंगे को हाथों से नही छोड़ना है


मेरी तो बस एक ही तमन्ना है

इस माटी पर ही मर मिटना है

हर ज़ख्म की दवा तो ये माटी है

माटी से बढकर नही कोई लाठी है

जख्मों को इस माटी से ही भरना है

लोहा पिघल सकता है,

लेकिन हम नही

सहनशीलता को पत्थर करना है

मेरी तो बस एक ही तमन्ना है

इस माटी पर ही मर मिटना है


न तो मैं भगतसिंह हूं

न ही मैं आज़ाद हूं,

मुझे तो बस इस माटी के लिये,

इस जिस्म को ही माटी करना है

जब भी मैं मर जाऊँ

इस जहां से चला जाऊँ,

वापिस कभी लौटकर न आऊं


मरने से पहले खुदा से 

ये आख़री दुआ कर जाऊँ,

तू मुझे सांसे भले कम देना

जितनी भी देना, 

इस माटी के लिये देना

सांस का हर सुमन,

इस माटी पर मैं लुटा जाऊँ

बस मेरी तो यही आख़री तमन्ना है

तिरंगे को सलाम करते हुए ही मरना है


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