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आखिर क्यों

आखिर क्यों

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तुम मुझे चर्च,

गुरुद्वारे,

मंदिर – मस्जिद में

बांट देते हो।

 

मैं पैदा होता ही हूँ कि

तुम मेरा खतना कर मुझे मुसलमान

नामकरण संस्कार कर हिन्दू,

क्रास पहनाकर ईसाई

बना देते हो।

 

तुम मुझे खेलने की, पढ़ने की,

मित्र चुनने की,

पत्नी चुनने की,

अपना कार्य-क्षेत्र स्वंय तय करने की,

भोजन करने की,

हर प्रकार की स्वतंत्रता देते हो।

 

फिर क्यों मेरे बगैर पूछे,

बगैर समझे,

मुझे मनुष्य बनने से पहले

हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई

बना देते हो।

 

क्यों, आखिर क्यों ?


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