आईना
आईना
तू खुद को पहचान, तू है शोला पर बदनाम,
अँगारे है ख्वाबों में, फिर भी इतना क्यों गुमनाम ।
माँ की कोख से जनम लिया, सपनो ने तुझको पाला है,
तू और ही कुछ है गिरते पड़ते आखिर तूने जाना है ।
वो भूख तुझे दिखती वो आँसू दिखते है मैदानो में,
जो मूक तू उनके शब्द बनके फिरता है चौबारों में ।
क्या खाक तुझे समझेगी दुनिया तू इनसे है बहुत अलग,
तू नही जीता खुद के लिए तेरी ज़िंदगी है खुद से अलग ।
दर्द वो सीने में लेके जो अक्सर कुछ ना कहते है,
जी मैडम जी सरजी कहके मस्तक नीचे रखते है ।
कोई और नही ये इस दुनिया का हिस्सा है अब मान लो,
ना अलग थलग करके इनको तुम खुद को शर्मसार करो ।
ना हर साधु सम्पन्न यहा ना हर राजा भंडारी है,
तू खुश है गर खुद से तो बस ये दुनिया तेरी सारी है ।
मँझदार में फंसी नैय्या की एक तू ही तो पतवार है,
कल की तू सोचे बहुत क्या आज जीने को तैयार है ?