प्रिय शिक्षक
प्रिय शिक्षक
प्रिय शिक्षक,
अपने शिक्षण कार्य के प्रारम्भिक दिनों में मैं एक बच्चे से मिली वैसे तो एक शिक्षक के लिए सभी बच्चों का महत्त्व होता है लेकिन उस बच्चे ने मेरा ध्यान अपनी ओर विशेष आकर्षित कियाI
शुभम, नाम था उसका, कक्षा में सबसे ज्यादा शैतानी करनेवाला... आप अगर स्टाफ रूम में बैठे हों और आपने शुभम शैतानी के बारे में पूरे दिन में एक बार चर्चा नहीं सुना तो दिन पूरा नहीं होताI
मैं जब इस विद्यालय में आयी तो मेरे लिए ये बहुत असहज था... एक बच्चे की शिकायत वो भी सारे शिक्षक के द्वारा मैंने अपने साथ काम करने वाले शिक्षकों से उसके कक्षा का पता कियाI
मैं पहली बार जब उसके कक्षा में गयी मैंने पाया मेरे जानकारी अनुसार ही वो हर दो मिनट पर ही कुछ ऐसा हरकत जैसे बाथरूम जाने की इच्छा जाहिर करना कभी दोस्तों से बात कभी कक्षा में कार्य पूरा नहीं करना इत्यादिI
मैंने उसे अपने पास बुलाया उसे पुछा, अच्छा ये बताओ तुम सबसे ज्यादा किसे प्यार करते हो...
उसने झ
टपट उत्तर दिया, अपनी माँ से...
अच्छा पापा से क्यों नहीं? मैंने पूछा...
क्योंकि उनके पास समय कहा होता है मेरी बात सुनने को, उसने कहाI
फिर मैंने कहा, और माँ से प्यार क्यों...
क्योंकि वो मेरे गलतियों पर भी जल्दी गुस्सा नहीं होती और मुझे समझाती हैंI
मैंने कहा तुम्हें पता है मेरे पास भी एक बेटा है तुमसे थोड़ा छोटा है लेकिन वो भी मुझे बहुत प्यार करता हैI एक बात बताओ अगर कोई तुम्हारी माँ को तंग करे तो कितना ग़ुस्सा आएगा...
बहुत आएगा, उसने झट से कहाI
मैंने कहा, तो मेरा बेटा भी अगर तुम्हें मुझे तंग करते हुए देखे तो उसे बुरा लगेगा ना इसलिए मैं तुम्हें अपने बेटे के तरह जब प्यार दे रहीं हूँ तो तुम भी मुझे प्यार और सम्मान दो जैसे अपनी माँ को देते होI
बस ये आखिरी दिन था जब शुभम की बदमाशियों के किस्से सुनने मिले थे उस दिन से उसने अपने किसी शिक्षक को कभी तंग नहीं किया और मैं उसकी प्रिय शिक्षक थी I