Freelance writer
'बाप के होटल' में खा रहे हो इस ताने से उकता गया है वो 'बाप के होटल' में खा रहे हो इस ताने से उकता गया है वो
रक्षा हो भाई की रक्षा हो देश की रक्षा हो सृष्टि की रक्षा हो भाई की रक्षा हो देश की रक्षा हो सृष्टि की
गाँवों की वो सरलता कहां से मैं लाऊँ गाँवों की वो सरलता कहां से मैं लाऊँ
कविता में ढलता चला जाता है कविता में ढलता चला जाता है
लहू को एक उबाल दे लहू को एक उबाल दे
कभी फूलों सी कोमलता तो कभी आग की तपिश कभी फूलों सी कोमलता तो कभी आग की तपिश
है अनोखा देश यह अपना अनोखे हैं जिसके त्यौहार आपस में हैं गुंथे हुए सब जैसे हो कोई मुक्ता हार है अनोखा देश यह अपना अनोखे हैं जिसके त्यौहार आपस में हैं गुंथे हुए सब जैसे हो...
भूल चुकी थी कि जेब में भी, सुरक्षित नहीं रहते ख्वाब। अगर तुरपाई समय पर ना करो तो फिसल सकते हैं ... भूल चुकी थी कि जेब में भी, सुरक्षित नहीं रहते ख्वाब। अगर तुरपाई समय पर ना कर...
क्या नाम दूँ उसको, बच्चों की तरह वो ज़िद पर भी आ जाती है। क्या नाम दूँ उसको, बच्चों की तरह वो ज़िद पर भी आ जाती है।
जिसका कोई अस्तित्व नहीं जिसका कोइ भविष्य नहीं। जिसका कोई अस्तित्व नहीं जिसका कोइ भविष्य नहीं।