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ज़ुल्म, ज्यादती, अत्याचार का अंत, अब तो नामुमकिन ही होगा। ज़ुल्म, ज्यादती, अत्याचार का अंत, अब तो नामुमकिन ही होगा।
काश कोई तो अपना होगा, पर वह तो पराया निकला काश कोई तो अपना होगा, पर वह तो पराया निकला
जब अपने नाम को हस्ताक्षर में तबदील कर लेना, जब अपने नाम को हस्ताक्षर में तबदील कर लेना,
ज़िन्दा लाश बन पड़ी हूं, तो लाश को लाश ही रहने दो। ज़िन्दा लाश बन पड़ी हूं, तो लाश को लाश ही रहने दो।
बेबाक लिखने की कलम, साथ छोड़ रही है। बेबाक लिखने की कलम, साथ छोड़ रही है।
बिना मजदूरी अन्न का दाना बहुत दूर है। बिना मजदूरी अन्न का दाना बहुत दूर है।
क्योंकि गैरत तलवारें खींचती थी, और बेगैरत सलवारें खींचती है। क्योंकि गैरत तलवारें खींचती थी, और बेगैरत सलवारें खींचती है।
ज़िन्दा लाश सी पड़ी हूं, तो लाश को लाश ही रहने दो। ज़िन्दा लाश सी पड़ी हूं, तो लाश को लाश ही रहने दो।
समाज के बनाए जा दकियानूसी, रिवाजों का जिम्मेदार कौन है। समाज के बनाए जा दकियानूसी, रिवाजों का जिम्मेदार कौन है।