मौत का उत्सव
मौत का उत्सव
स्वर्गवास, मौत, मृत्यु, निधन, देहांत
ये सब सुनते ही एक अनजाना सा डर लगता है
इंसान गंभीर हो जाता है, अचानक चुप हो जाता है
हर चेहरे पर उदासी का भाव झलक आता है ।
मरने के बाद इंसान के सारे एहसास भी मर जाते हैं
मरने वाले को तो पता ही नहीं होता कि वो मर चुका है
इस दर्द का एहसास तो दूसरों को होता है
फिर इंसान को मौत का भय क्यों होता है ?
क्या ये अपनों से बिछड़ने का भय है ?
क्या ये अपने अर्जन से दूर होने का भय है ?
क्या ये किसी अनजान जगह का भय है ?
आखिर ये कौनसा भय है जो इंसान को सताता है ?
हाँ, इस भय का कारण समझ आ सकता है
अगर ये जरूरी काम, अधूरे छोड़ने का भय है
अगर अपनी जिम्मेदारियां, पूरी ना होने का भय है
अगर अपनों को मंझधार में छोड़ने का भय है
तकलीफ ज़िन्दगी देती है, मौत का तो नाम बदनाम है
लोग जीवन भर मौत के नाम से डरते रहते हैं
बुढ़ापे में जब नियंत्रण नहीं रहता, शरीर साथ नहीं देता
तो इंसान बार बार कहता है, भगवन अब तो मौत दे ।
क्योंकि मृत्यु दु:ख, भय, मुश्किलों से छुटकारा है,
जीवन के हर बंधन से, हर परेशानी से मुक्ति है,
मौत को इंसान का मुक्ति दिवस मनाना चाहिये,
मौत का भय नहीं, मौत का उत्सव होना चाहिये ।