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फागुन

फागुन

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फागुन आते ही जहाँ सबका दिल गुनगुनाने लगता है ।मन रंगीन ख्वाब सजाने लगता है ।मिताली भी उनसे अलग ना थी खूब खुशी और उल्लास से त्योहार के आगमन की तैयारी चिप्स पापड़ गुझिया आदि तरह तरह के पकवान बना कर होली का स्वागत करती।उसके द्वारा बनाये गये दही बड़े ,काँजी ,समोसे व खस्ते सबकी जान हुआ करते थे ।सभी को वो प्रेम से खिलाती ।पर उसके मन में कुछ था जो वो होली खेलती नहीं थी ।आज भी होली के पावन पर्व के मौके पर वो एसे ही गुमसुम विचारमग्न बैठी हुई थी कि किसी ने होली है कहते हुये उसके गुलाल लगा दिया ।देखा तो उसकी प्यारी बिटिया थी ।उसने प्यार से उसे समझाया “बिटिया मैं रंग नही खेलती ।तुम बाहर जाकर खेलो ।”बिटिया ने गुलाल लगाते हुये कहा “क्यूँ माँ सब तो खेलते हैं तुम भी खेलो ।” कैसे कहे मिताली कि हर होली पर उसे वो वाक़या याद आ जाता है जब श्वसुर गृह में उसके द्वारा होली खेलनें पर घर के मुखिया ने उसको बेशर्म क़रार दे दिया था ।वो दिन था और आज का दिन उसने होली खेली ही नहीं।”पर आज जब वक्त बदल गया है कब तक उन पुरानी बातों को ले कर बैठी रहोगी ।बिटिया ने रंग लगाया है तो हम क्यों पीछे रहें के साथ होली है”कहते हुये उसके पति ने उसको गुलाल से लाल कर दिया ।दिल से तो उसे भी होली खेलना बहुत भाता था तो उसनें भी फिर झट से पास ही रखा गुलाल उठा कर बुरा ना मानों होली है कहते हुये सबके लगाना शुरु कर दिया ।घर में बरसों से फैले होली के मौके के सन्नाटे में होली के रंगो के साथ खुशियों के रंग बिखर गये ।



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