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Ragini Ajay Pathak

Others

4.5  

Ragini Ajay Pathak

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पहले किसे विदा करुँ!

पहले किसे विदा करुँ!

11 mins
462



"अरे उमा ....उमा! मेरे सामान कहाँ रखती है तू? मेरा पनडब्बा नहीं मिल रहा। सुन भी रही है?बहरी...जिंदा है या मर गयी।"

"ये माँजी भी ना.....हद करती हैं उम्र 92 की हो गयी, शरीर कमजोर हो गया.... लेकिन जुबान आज भी वैसे ही है। तेज छुरी के जैसे।"


" हे भगवान! सब के सब नमूने मेरी किस्मत में लिखने थे" मन ही मन बुदबुदाते फूलते हुए साँस के साथ उमा तेजी से सीढियां चढ़कर सास के कमरे में पहुंची

"क्या हुआ? क्यों पूरा घर सिर पे उठा रखा है?" उमा जी ने बोला|

"चुप कर नाशपीटी! इसी डंडे से मार पड़ेंगी तो सारी अक्ल ठिकाने रहेगी, समझी?" उमा जी की सास माया जी ने कहा।

"हाँ! चला तो जाता नहीं। बड़ी आयी डंडे से मारने। बोलिये क्या चाहिए था? मुझे बहुत काम हैं" उमा जी ने बोला|

"पान का डब्बा किधर रखा है मेरा? मिल नहीं रहा" मायाजी ने बोला।

"ये तो रहा आप के पीछे थोड़ा गर्दन हिला लेती तो दिख जाता" उमाजी ने डब्बा उठाकर उनके हाथ मे पकड़ाते हुए बोला|

"तेरी जुबान बहुत चलने लगी है, आने दे मेरे बेटे सूबेदार को तेरी खबर लेगा, फिर देखती हूं कैसे चलती है तेरी जुबान अपने पति के आगे" मायाजी ने बोला।

हाँ! आने तो दो, उनकी तो इस बार मैं ही खबर लेने वाली हूँ। बेटी की शादी में इतने काम और सब अकेले मुझे ही देखना पड़ रहा है। बस बोल दिया।" उमा मेरा सपना है एक बार राधा को खुशी खुशी डोली में बिदा कर लूं। तो बस गंगा नहा लूँ।"


खुद देश की सेवा में लगे हैं और मुझे यहाँ अकेले घर वालों की सेवा में लगा दिया। एक ही तो बेटी है हमारी कौन से दो चार बच्चें है और बाप ही नहीं आया अभी तक| बस खत भेज दिया, शादी वाले दिन ही पहुँच पाऊँगा। भला कोई बाप ऐसा भी करता है ?


"माँ! माँ! कहाँ हो? मेरा मोबाइल कहाँ है?" उमा की इकलौती बेटी राधा ने आवाज लगाई|

"हाँ आयी बस! रुक जा"। फिर सीढ़ियों से भागते हुए उमा जी नीचे बेटी के कमरे में आईं।

"क्या माँ माँ चिल्ला कर गला फाड़ रही है ? तकिए के नीचे मोबाइल रखकर सो जाओ और सुबह उठकर भूल जाओ..... ये ले.......कहते हुए मोबाइल को बेटी के हाथ मे रख दिया।"


कमरे के बिखरे सामान समेटते हुए उन्होंने बेटी से नाराजगी भरे स्वर में कहा ,"शादी हो जाएगी कल तेरी.... लेकिन कोई सामान मजाल है जो तू सही जगह रखे। ससुराल में ये सब नहीं चलता समझी। खुद का काम खुद ही करना पड़ेगा| और बाकी घर वालो का भी काम करना पड़ेगा| फिर आएगी माँ की याद की कितना सताया है।"


" क्या ?माँ! कुछ भी| मुकेश तो हैं|तुम्हारे होने वाले दामाद। वो करेगा मेरी मदद" राधा ने कहा।

"कोई ना करता मदद बेटा। देख ले तेरे बाप को ही| बेटी की बारात में आएंगे। मुझे तो डर है कही ये ना कह दे तेरे साथ उनकी भी बिदाई कर दूँ। ये फौज वालो का कोई भरोसा नहीं। इनको बस देश की सेवा की चिंता होती है" उमा ने बोला और उनके चेहरे पर बहुत सारे भाव एक साथ उभर गए आंखों में आंसू आ गये।

"क्या ?माँ तुम भी| अरे ! नहीं मिली छुट्टी तो क्या करेंगे वो भी?.... तुम पे भी उम्र का असर होने लगा हैं?..... वैसे दिखती नहीं तुम 55 की। इसीलिए तो पापा तुम पे फिदा हो गए। और उस जमाने में लव मैरिज। क्या बात हैं मां? राधा ने माँ को छेड़ते हुए माहौल को हल्का करने के लिए हँसते हुए बोला।

"चुप कर बाप की चमची। 18 की थी तब थोड़ी ना पता थी इतनी दुनियादारी।तू उनका और वो तेरा ही तो पक्ष लेते है। तू तो शादी करके चली जायेगी .........इस घर को खाली कर के.... फिर किससे बाते करूँगी अपने मन की। एक बेटा होता तो आज मेरा सहारा होता।" कहते हुए उमा जी बार बार रुआंसी हो जाती।  


फिर खुद ही खुद को संभालते हुए बोली।"अच्छा! चल सो जा कल सुबह सुबह से ही सारे काम है मैं बाकी मेहमानों को देख के आती हूं। "


राधा ने माँ का हाथ पकड़ते हुए कहा,"माँ ! मुझे पता है तुमने बहुत किया और सहा है हम लोगो के लिए। औऱ ये सब कुछ सिर्फ और सिर्फ तुम ही कर सकती हो और कोई नहीं कर सकता। ना जाने कहाँ से इतनी हिम्मत लाती हो तुम.... पर एक वादा मै भी आज आप से करती हूँ। "मैं आपको कभी किसी भी मुश्किल में अकेला नहीं छोडूंगी... चाहे कुछ भी हो जाये। "कहते हुए राधा माँ के गले लग गयी। 


अगली सुबह उमा को वहाँ मौजूद किसी बच्चें ने आवाज़ दी"मामी किसी का फोन आया है आप से बात करनी है। "


उमा ने पूछा," कौन है ? "


"पता नही! आप को ही बुलाया है।कुछ जरूरी बात करनी है। "

उमा का मन तमाम आशंकाओं से भर गया ....वो सोचते हुए आ रही थी कि किसने फ़ोन किया होगा और क्यों?मन ही मन बोले जा रही थी हे !प्रभु अब क्या हुआ| कही लड़के वालों ने कुछ मांग तो नहीं बढ़ा दी। किसी ने शादी बिगाड़ तो नहीं दी| एक तो ऐसे मौके पे राधा के पापा भी यहाँ नहीं है। शादी कटी तो बड़ी बदनामी होगी समाज मे। कल ही तो की थी बात .....वो अपनी बुआ की बेटी के बारे में सोचने लगी बेचारी राखी की शादी दहेज़ के कारण ही तो कटी बारात के समय मांग बढ़ा दिया लड़के वालों ने।ऐसा कुछ हुआ तो राधा को कैसे समझाऊँगी? 


"हे! भगवान रक्षा करना। अब सब तुम्हारे हाथ मे हैं।" सोचते बड़बड़ाते हुए उमा ने "हैलो" बोला। 


उधर से आवाज आयी,"उमा कैसी हो? ...


उमा ने एक गहरी सांस ली और कहा,"अरे राधा के पापा आप,मैं तो ठीक हूं मैं तो फोन की आवाज सुनकर डर ही गयी थी कि किसका फोन है?"

सूबेदार ने कहा,"अच्छा बताओ ,सारी तैयारियां हो गयी, अच्छा सुनो मैं वो कह रखा था कि "....कहते कहते सूबेदार की जुबान रुक गयी।"


"जी बोलिये! तैयारियां तो सब हो गयी है। थोड़ा बहुत है जो आप आकर के कर देना? अच्छा आप अपनी बात तो पूरी कीजिए.... क्यों बोलते बोलते रुक गए। लेकिन अपनी बात कहने से पहले मेरी भी एक बात सुन लीजिए। देखिये ऐसा मत बोलियेगा की आपको छुट्टी नही मिलेगी इस बारे मे मैं कुछ नही सुनने वाली।अपने ऑफिसर को बोलिये छुट्टी दे आपको और कैसे भी यहाँ आइए आप बस|"


"उमा! तुम समझ क्यों नही रही मुझे छुट्टी तो मिल गयी थी लेकिन अचानक युद्ध छिड़ जाने से सबकी छुट्टियां कैंसिल कर दी गयी है।"


उमा ने नाराजगी भरे लहजे में कहा" ये क्या ?बात हुई भला |सारे फ़र्ज़ देश के लिए घर वालो के फ़र्ज़ का क्या ? अरे !मेरे लिये ना सही| बाप होने का तो फ़र्ज़ निभाना ही होगा। कन्यादान कौन करेगा ?इतने काम है कि मुझे एक मिनिट साँस लेने की फुर्सत नहीं ,एक ही बेटी है हमारी..आप नहीं आए तो वो मंडप में भी नही बैठेगी आपको तो अच्छे से पता है कितनी जिद्दी है आपकी बेटी.....बिल्कुल आप की तरह......उमा बोले जा रही थी "


तभी सूबेदार ने कहा," चुप हो जाओ उमा ...तुम देख लो सब कुछ .....मेरा आना सम्भव नहीं हो पाएगा। और हाँ राधा को तुम ये बात मत बताना जब तक कि उसकी विदाई ना हो जाए । मुझसे वादा करो तुम....कैसे भी तुम्हे ये शादी और राधा की विदाई खुशी खुशी करनी ही होगी।तुम तो जानती हो हम फौजियों के लिए हमारे हिंदुस्तान से आगे कुछ भी नहीं। परिवार और बच्चें भी नहीं। और तुम एक फौजी की पत्नी हो। तुम्हें हौसला रखना होगा और मातापिता दोनो की जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी।"


"आप होश में तो है क्या बोल रहे हैं?"उमा ने कहा


सूबेदार ने कहा ,"देखो कोई जरुरत हो तो सुरेश को फोन कर लेना.... मै शायद अब युद्ध खत्म होने तक तुमको फोन नहीं कर पाऊंगा। इतना कहकर फोन काट दिया।"


इतना सुनते ही उमा जैसे शून्य हो गयी आँखों से आँसू निकलने लगे उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था उसके हाँथ से फोन का रिसीवर छूट गया। वो वही सोफे पर सिर पर हाँथ रख धम्म से बैठ गयी। 


तभी उसे तुरंत सूबेदार की बात याद आ गयी । उसने तुरंत सूबेदार के दोस्त सुरेश को फोन किया।भागते हुए सुरेश घर पर आ गए। 


"क्या हुआ भाभी जी?" सुरेश ने पूछा तो 


उमा ने उनको सारी बात बतायी।


तभी" माँ माँ कहाँ हो ?"राधा बोलते बोलते उमा के पास आई।


उसने देखा उसके पापा के दोस्त सुरेश काका आये हुए है।


राधा


"बेटा| पैर छू। ये देख सुरेश काका आये है।"


राधा ने आगे बढ़ के पैर छुये। और कहा,"चाचा आप कब आए?" औपचारिक बात चीत के बाद 


राधा ने फिर अपनी मां से कहा ""माँ! वो मैं पार्लर जा रही हूँ। तैयार होने| 2 बज चुके हैं। अच्छा! ठीक है। जा|जाते हुए राधा ने पीछे मुड़ के पूछा।"" अच्छा मां ....बात हुई क्या पापा से ?कब तक आने वाले हैं।""

"तू जा मैं पुछती हूँ। " उमा ने भारी मन से बोला।

"अच्छा सुनो माँ|" राधा पास आ के अपनी मां के गले लग कर धीरे से बोली| 


"सुनो पापा से प्यार से ही बात करना| गुस्से में चिल्लाने शुरू मत हो जाना।"


उमा ने """हम्म"" कह के जाने का इशारा किया। उमा के लिए अपने आंसू रोक पाना मुश्किल हो रहा था।

"ये क्या? भाभी जी आप ने राधा बिटिया को बताया क्यों नही,सूबेदार नहीं आ रहा?"

"भाईसाहब! आप को याद है। जब राधा के पापा| शादी तयकर के आये थे तो क्या बोला था?कि उमा सुनो !लड़का बहुत अच्छा है| हाथ से निकले मत देना| कैसे भी, किसी भी परिस्थिति में मुझे ये शादी करनी ही है।

सही भी कहा था एक सिपाही के पास इतने पैसे कहाँ होते है जो डॉक्टर लड़के से शादी तय कर सके। और मुकेश तो कितना शांत और संस्कारी है। और उसका परिवार भी। राधा की खुशी देखी आप ने |आज मैंने उसकी शादी ना कि तो शायद ये राधा के पापा और राधा दोनो के साथ अन्याय होगा।और आज तो उन्होंने मुझसे वादा भी ले लिया।

"पर भाभीजी,भारत पाकिस्तान का युद्ध छिड़ गया है। ना जाने किस पल क्या हो जाए। भगवान ना करे अगर कोई अनहोनी हो गयी तो"


"शुभ शुभ बोलिए भाईसाहब!"

आप के दोस्त ने कहा," कि मुझे जब भी जरूरत हो तो मै आप से मदद मांगू। क्योंकि उनको भरोसा है आप पर कि आप कभी किसी परिस्थिति में मदद करने से मना नहीं करोगे। मेरी बस इतनी सी मदद कीजिये । कि विदाई में देने के लिए कुछ सामान लाने और भी कुछ चीजें बाकी हैं। जिन्हें अब मै लेने नहीं जा पाऊंगी। बस आप वो बाजार से लेते आइए। अब मेरा एक मात्र लक्ष्य यही है कि ये शादी अच्छे से कर लूं बस। पहले बेटी को विदा करूंगी फिर आपके दोस्त की खबर लुंगी।"

उमा को ना जाने क्यों शादी वाले दिन सुबह से बेचैनी महसूस हो रही थी? उसे मन हो रहा था कि वो अकेले में बैठकर खूब रोए। किसी भी काम मे उसका चाहकर भी मन नही लग रहा था उसको अब बहुत जल्दी थी शादी निपटाने की । उसे अपनी बेचैनी की वजह समझ नही आ रही थी वो शादी की सभी रस्मे जल्दी जल्दी कर रही थी किसी को उसकी हड़बड़ाहट का कारण नहीं समझ आ रहा था। मायाजी उसको ऐसा करता देखकर खूब चिल्ला रही थी लेकिन उसको कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।

सुबह सुबह जल्दी विदाई की बात होने लगी। लड़के वाले भी राजी हो गए पर राधा ने अपनी माँ का हाँथ पकड़ के बोला" क्या बात है माँ?"

"क्या? बात! क्या !बात !क्या होता है ?कोई भी बात नहीं तू जा जाकर तैयार हो विदाई के लिए। ज्यादा सवाल मत कर मुझसे।"उमा ने लड़खड़ाती जुबान में बोला

"माँ! पापा क्यों नहीं आये अबतक? .....बात हुई तुम्हारी...तुमने तो बोला था कि वो रास्ते मे है कभी भी पहुंच सकते है। फिर क्या हुआ ? अब तो विदाई की भी तैयारी हो रही है। मैं नहीं जाऊंगी बिना उनसे मिले।"


" हाँ हुई|बड़ी आयी नही जाने वाली... छुट्टी नहीं मिली।"


"मतलब" 

"अरे मतलब उनकी ट्रेन छूट गयी थी तो उनको दूसरी ट्रेन पकड़नी पड़ी और वो ट्रेन लेट हो गयी है।"


"अच्छा मेरा फ़ोन दो| मैं बात करती हूँ। "राधा ने कहा।

"नहीं कोई जरूरत नही। समझी। बोला रास्ते मे है बस कभी भी पहुंच सकते है।" 


राधा शायद अपने माँ के चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही थी। ना चाहते हुए भी उसे भी किसी अनहोनी के होने का एहसास हो रहा था। उसका दिल भी घबरा रहा था लेकिन उसने माँ कहीं कमजोर ना पड़ जाए ये सोचकर वो शांत थी। अंत मे उसने माँ की बात मानकर कमरे को बंद किया और विदाई के लिए तैयार होने लगी।


अचानक घर के मुख्य दरवाजे पर भीड़ बढ़ गयी । उमा ने खिड़की से झाँकर देखा तो आर्मी की गाड़ी खड़ी थी उसे लगा सूबेदार अपने दोस्तों के साथ आ गए। वो तेजी दौड़ती भागती बाहर की तरफ गयी तो देखा गाड़ी से एक ताबूत उतर रहा है। और सूबेदार " अमर रहे" के नारे लग रहे है. सूबेदार का पार्थिव शरीर देखते उमा चिघाड़े फाड़कर जोर जोर से रोने लगी ,"ये कैसी उलझन में डाल दिया मुझे राधा के पापा... ये क्या किया आपने ....अपना वादा क्यों नही पूरा किया? कौन ऐसी मुश्किल में डालता है? अब मै पहले किसको विदा करूँ"


बूढ़ी माँ मायाजी का और बाकी वहाँ मौजूद सभी का रो रो के बुरा हाल हो रहा था आस पड़ोस समझाता लेकिन आंसू पे जोर कहाँ?

तभी कमरे से बाहर भीड़ को चीरती हुई एक तेज़ आवाज आई! 

"पापा.......पापा।"

"पापा.... पापा पुकारती रोती भागती हुई राधा लाल जोड़े में आ के पिता के पार्थिव शरीर से लिपट गयी। और जोर जोर से रोनी लगी। ये क्या पापा? ऐसे कौन विदा करता है अपनी बेटी.....उठो ना पापा....देखो मुझे बताओ आपकी बेटी कैसी दिख रही है? उठो पापा प्लीज ....."

जिसने भी ये मंजर देखा।सबकी आंखे नम हो गई।

तभी उमा जी को उनके दामाद मुकेश ने उठाया। उमा जी दामाद के गले लग के रोने लगी। मैने इनके ना आने की बात राधा से इसलिए छिपाई की वो सच जान जाती की उसके पापा युद्ध मे लड़ाई की वजह से नहीं आ पाएंगे तो वो कभी भी शादी के लिए तैयार नहीं होती। मैं तो दुविधा में हो गयी कि अब किस की विदाई पहले करुँ।" 


मुकेश ने उमा जी को ढांढस बंधाते हुए कहा" माँ! हमे ये बात कल देर रात ही न्यूज में पता चल गयी थी जब तक हम ये शादी रोकने के लिए बात करने आप के पास आते...... सुरेश अंकल ने आ के हमे सारी बात बता दी|"


लेकिन अब आप चिंता मत करो। हम सबको को तो पापा जी पर गर्व होना चाहिए कि पापाजी ने घर परिवार पीछे और देश सेवा को पहले रखा और अपनी जान कुर्बान कर दी| पहले उनकी ही विदाई होगी, पूरे सम्मान के साथ।''


ये सिर्फ एक काल्पनिक कहानी है पर ऐसे बहुत से दर्द और मुश्किलों का सामना एक फौजी का परिवार हर रोज करता है। इसलिए आप लोगो को ये ब्लॉग कैसा लगा? अपने विचार जरूर व्यक्त करें। किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए माफ करें।


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