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सारस और बगुला

सारस और बगुला

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उड़ रहा था उल्लू – ख़ुशमिजाज़ उल्लू ; उड़ रहा था, उड़ रहा था और बैठ गया, घुमाया सिर, देखा इधर-उधर, उठा और फिर से उड़ान भरी; उड़ रहा था, उड़ रहा था और बैठ गया, घुमाया सिर, देखा इधर-उधर, और आँखें उसकी हैं सपाट, देखें ना घर ना घाट !

ये परीकथा नहीं है, प्रस्तावना है, और परीकथा है आगे।

बसन्त ऋतु पड़ गई सर्दियों के पीछे और लगी उसे सूरज से खदेड़ने-भूनने, और लगी हरी-हरी, कोमल घास को धरती से बुलाने; जागी–भागी घास सूरज को देखने, लाई साथ में फूल पहले – बर्फ से ढंके : नीले और सफ़ेद, नीले-लाल और पीले-भूरे। समुन्दर पार से खिंचे आए मुसाफ़िर पंछी : कलहँस और हँस, सारस और बगुले, टिटिहरी और बत्तख, गाने वाली चिड़िया और अकडू-फुदकी। सब उड़कर आये हमारे रूस में, घोसले बुनने, परिवारों के साथ रहने। अपने-अपने प्रदेश में बिखर गए : स्तेपियों में, जंगलों में, दलदलों में, झरनों में।

सारस अकेला खड़ा है खेत में, इधर-उधर देख रहा है, सिर हिलाता है और सोचता है : “मुझे अब घर बसा लेना चाहिए, घोसला बनाना चाहिए और घरवाली लाना चाहिए”।

बुना उसने घोसला ठीक दलदल के पास, और दलदल में, टीले पर बैठी थी लम्बी-लम्बी नाक वाली बगुला मेम सा’ब, बैठी है, और सारस को देख रही है, अपने आप मुस्कुरा रही है : “कैसा बेढंगा है !”

उसी समय सारस ने सोचा : “बगुला मेम सा’ब से शादी की बात करता हूँ, वो हमारे ही खानदान पर गई है : चोंच हमारे जैसी, और टाँगें भी लम्बी-लम्बी”। चला वह दलदल में अनचले रास्ते पर : पैरों से छप-छप करते, टाँगें और पूँछ दलदल में धँस रहे हैं; चोंच का लेता है सहारा – पूँछ बाहर खींचता है, चोंच धँस जाती है चोंच निकालता है – पूँछ धँस जाती है; मुश्किल से बगुले के टीले तक पहुँचता है, देखता है छड़ी की ओर और पूछता है :

“क्या बगुला-मेमसा’ब घर में हैं ?”

“यहीं है वो। क्या चाहिए ?” बगुला मेम सा’ब ने जवाब दिया।

“मुझसे ब्याह कर लो,” सारस ने कहा।

“किसी हालत में न करूंगी ब्याह तुमसे, दुबले-पतले, सींकिया जवान से : तेरी कमीज़ भी छोटी-सी है, और तू ख़ुद पैदल घूमता है, कंजूसी से रहता है, मुझे घोंसले में भूखा मार डालेगा !”

ये बातें सारस को अपमानजनक लगीं। वह चुपचाप मुड़ा और वापस घर लौट गया : छप-छप, छप-छप।

अपने घर में बैठे-बैठे बगुला मेम सा’ब ने सोचा, “आख़िर, क्यों मैंने उसे इनकार किया, क्या मुझे अकेले रहना अच्छा लगता है ? वो अच्छी नस्ल का है, सब कहते हैं उसे छैला, चलता है कलगीवाला; उसके पास जाकर अच्छी बात कहती हूँ”।

चल पड़ी बगुला मेम सा’ब, मगर दलदल कोई पास तो नहीं था : कभी एक पाँव फँसता, कभी दूसरा, एक निकालती – दूसरा फँसता। पंख फैलाती – चोंच गड़ाती; जैसे तैसे पहुँच गई और बोली :

“सारस, मैं तुझसे शादी करूँगी !”

“नहीं, बगुला मेम सा’ब,” सारस उससे बोला, “मैंने इरादा बदल दिया है, मैं तुझसे शादी नहीं करना चाहता। जहाँ से आई है, वहीं लौट जा !”

बगुला मेम सा’ब को शरम आई, उसने पंख में अपने आप को छुपा लिया, और चल पड़ी अपने टीले की ओर; मगर सारस को उसे जाता देखकर अफ़सोस हुआ कि क्यों मना कर दिया; वह घोंसले से बाहर उछला और चला उसके पीछे पीछे दलदल में छप-छप करते हुए। उसके पास आकर बोला :

“अच्छा, चल, ऐसा ही करते हैं, बगुला मेम सा’ब, मैं तुझे अपनी बीबी बनाऊँगा।”

मगर बगुला-मेम सा’ब बैठी थी गुस्से में-खूब गुस्से में और सारस से बात नहीं करना चाहती।

“सुन, मैडम-बगुला, मैं तुझसे शादी करूँगा,” सारस ने फिर कहा।

“तू तो करेगा, मगर मैं नहीं चाहती,” उसने जवाब दिया।

क्या करता ! सारस वापस अपने घर चला। “ऐसी बदमिजाज़ है,” उसने सोचा, “अब तो मैं किसी भी हालत में उससे ब्याह नहीं करूँगा !”

सारस घास में आकर बैठा और वह उस तरफ़ देखना भी नहीं चाहता था, जहाँ बगुला मेम सा’ब रहती थी। मगर बगुला मेम सा’ब ने फिर से अपना इरादा बदल दिया : “अकेले रहने के बदले दोनों का मिलकर रहना बेहतर है। जाकर उससे समझौता करती हूँ और उससे शादी कर लेती हूँ”।

चल पड़ी फिर से दलदल में। दलदल का रास्ता लम्बा था, दलदल चिपचिपी थी : कभी एक पाँव फँसता, तो कभी दूसरा। पंख फैलाती – चोंच गड़ाती; मुश्किल से सारस के घोंसले तक पहुँची और बोली : “सारस्का, सुन रे, ऐसा ही करते हैं, मैं तुझसे ब्याह कर लूँगी !”

मगर सारस ने जवाब दिया :

“चली फ्योदरा ईगर को ब्याहने, कर ही लेती ब्याह फ्योदरा ईगर से, मगर ईगर माना ही नहीं।”

ऐसा कहकर सारस ने मुँह फेर लिया। बगुला मेम सा’ब चली गई।

सारस सोचता रहा, सोचता रहा, उसे फिर से अफ़सोस हुआ, जब बगुला मेम सा’ब ख़ुद चाहती है, तो वह उससे ब्याह क्यों न करे; फौरन उठा और फिर से दलदल में चल पड़ा : पैरों से छप-छप करते हुए, मगर पैर और पूँछ फँस ही जाते; चोंच गड़ाता है, पूँछ निकालता है – चोंच फँस जाती है, और चोंच निकालता है - पूँछ फँस जाती है।

इसी तरह वे आज तक एक दूसरे के पास आ-जा रहे हैं; रास्ता रौंद दिया,               

मगर खीर तो पकाई ही नहीं।


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