साई नाथ
साई नाथ
हमने अपनी पत्नी पुष्पा से कहा। वह मात्र बस स्टैंड नहीं है। वह भटके हुए मुसाफिरो के लिए, भटके हुए भक्तों के लिए इशारा है। इस जग में आपा धापी से समय निकालकर थोड़ा विश्राम कर साईं नाथ के दर्शन कर लो। साई नाथ के नाम को भज लो।पुष्पा हमारी पत्नी ने हमसे पूछा ऐसा क्या है। उस बस स्टैंड पर जहा आप भगवान का नाम याद करने के लिए कह रहे हो।हमने प्रेम से मुस्कुराते हुए कहा मानो तो गंगा मां हूं वरना बहता पानी।पुष्पा मुश्किल से 10 कदम की दूरी पर वहां भक्तों को कुछ समय के लिए ही सही हर प्रकार की चिल्लम चिल्ली से छुटकारा मिल जाता है।
मुश्किल से 10 कदम की दूरी पर भवसागर को पार कराने के लिए भगवान साईं नाथ ने अपना निवास स्थान बना रखा है। जिसका नाम साईं मंदिर रखा गया है।पुष्पा हम बात कर रहे थे 10 अक्टूबर 2022 की। जब शाम को लगभग 6:30 बजे हम कार्यालय से उत्तम नगर अपने घर विश्वास पार्क राजा पुरी बस स्टैंड जाने के लिए बस संख्या 764 का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। तभी हमारे पीछे कुछ छोटे बच्चे जो बीड़ी पी रहे थे।उन्हीं में से कई बच्चों की आवाज आई।साईं मंदिर में समोसे बांट रहे हैं। जो जितना भी खा ले। यहां तक वह घर के लिए भी दे रहे हैं। वह भी बिल्कुल मुफ्त।हालांकि यह सब सुनकर मुंह में पानी भरा जा रहा था।जब बीड़ी से धुआं उड़ाते हुए बच्चों ने यह कहा।साईं नाथ मंदिर में समोसे बट रहे हैं। बार-बार अधीर मन में बच्चो की बाते सुन सुनकर मुंह में पानी भरा जा रहा था। अधीर मन ने मन में सोचा कहीं मन में बाढ़ ना जाए।इसी को ध्यान में रखते हुए हमारे कदम चल पड़े भगवान साईं नाथ के मंदिर रूपी दरबार में।जब हम भगवान साईं नाथ के ऊर्जावान दरबार साईं नाथ के मंदिर में पहुंचे वास्तव में जो मुंह में पानी आया था।
उसे रोकने के लिए स्वादिष्ट समोसे रूपी बांध को हमें खाना ही पड़ा।अन्यथा वह हमारे अंतर्मन में उथल-पुथल मचा देता।
कहते हैं दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम।मायने यह नहीं रखता किसने खिलाया मायने रखता है किसने खाया।जब व्यक्ति किसी का भोजन रूपी प्रसाद खाता है।तब वह प्रसाद रूपी भोजन भगवान के द्वारा अंतर्मन से ना जाने कितने वरदान रूपी दुआएं देता है।जैसे हमने स्वादिष्ट समोसा खाया परंतु खिचड़ी प्रसाद को देखकर आंखें ही नहीं ललचाई खिचड़ी प्रसाद को देखकर दिल बाग बाग हो गया।हमें प्रसाद रूपी खिचड़ी के एक दो नहीं चार पुडे खाए।उसके पश्चात शीतल पेय पीकर भगवान साईं नाथ का धन्यवाद किया।हमने उन समस्त लोगों का भी धन्यवाद किया।जो आज दिन प्रतिदिन भगवान साईं नाथ की आज्ञा के अनुसार लाखों लोगों का दिन प्रतिदिन पेट भरते है।हमने भगवान साईं नाथ का धन्यवाद किया।आपकी सेवा में जनप्रतिनिधि आपके द्वारा चुने गए वह भक्त हैं। जिन पर आपकी विशेष कृपा रही है।जिन्हें आपने अपनी शरण में ले रखा है।इनका व्यवहार इनका बोलचाल इनका स्वभाव विनम्र है।इसी को ध्यान में रखते हुए हम उन सभी सेवादार का भी दिल से धन्यवाद करते हैं।
जिन्होंने हमारे पूछने पर कहा आप ही नहीं जो भी यहां आएगा पेट भर कर खा सकता है।यह भोजन नहीं प्रसाद है अनमोल है। यह खाएगा वही जिस पर भगवान साईं नाथ ने अपनी कृपा बरपा रखी है।इतने रसीले मधुर वचन सुनकर इतनी खुशी लग रही थी।जितना भगवान साईं नाथ का प्रसाद खा कर मन प्रसन्न चित्त हो रहा था।
हमने भी अगले दिन 11 अक्टूबर 2022 को कार्यालय में पहुंचकर सब को बताया।भगवान साईं नाथ के मंदिर में हमने छक कर प्रसाद खाया।आज आप सब भी भगवान साईं नाथ के मंदिर पर प्रसाद खाने के लिए सादर आमंत्रित हैं।
हम सब ने मिलकर भगवान साईं नाथ का प्रसाद खाया।भगवान साईं नाथ का प्रसाद खाकर सभी आनंदित थे।तभी हमें फिर वही बात याद आ गई।भगवान जो करता है अच्छा करता है।यह भगवान राधे कृष्ण का आदेश है कि उन्होंने हमें अपना आशीर्वाद देकर आज सशक्त भूमिका में खड़ा किया है। जहां हम अपने निपुणता से अन्य लोगों को प्रेरित कर रहे है। हममे वह हुनर है जिसकी आप सबको तलाश हहममें वह हुनर है जिससे हम टीम का सफल नेतृत्व आसानी से कर पा रहे है।हम धन्यवाद करते हैं अपने आला अधिकारियों का।जिन्होंने एक बार फिर हमारी गलतियों को माफ कर जिम्मेदारियों का भार संभालने के लिए दिया है।हम धन्यवाद करते हैं समस्त ब्रह्मांड का हम धन्यवाद करते हैं अनजान मित्र और यात्रियों का हम धन्यवाद करते हैं आस-पड़ोस और अपने सहयोगियों का। जय हो साईं नाथ की।यह भगवान की कृपा है यह भगवान का ही प्यार है।
जिसे हम दिल से स्वीकार करते हैं जय साईं नाथ की चलते-चलते भगवान साईं नाथ समस्त विश्व का कल्याण करें।
कहते है जो भी भक्त मुसाफिर भगवान साईं नाथ के मंदिर की सीढ़ियां चढ़ेगा। वह भाव सागर पार हो जाएगा। जो दो घड़ी साई नाथ को भज लेगा। उसके सारे दुख दर्द समाप्त हो जाएंगे। अब आप प्यार से बोल दीजिए जय साई नाथ की। हे साई नाथ सुख देना तो इतना देना की अहंकार ना हो जाए।
हे साई नाथ दुख देना तो इतना देना की आस्था ना चली जाय।
