पहला प्यार
पहला प्यार
पहला प्यार। देखा जाए तो लगभग हर इंसान की जिंदगी में पहला प्यार उसकी मां या पिता ही होते हैं। फिर उसके बाद दाद-दादी, नाना-नानी और भाई-बहन। यही प्यार जिंदगी भर उसके साथ साये की तरह चलता है। जिस प्यार की बात की जाती है। उसका नंबर तो बहुत बाद में जाकर आता है लेकिन वह प्यार नहीं, बल्कि जिंदगी की जरूरत को पूरा करने के लिए खूबसूरत तरीके से मैनेज करने का एक माध्यम भर होता होता है। यह अलग बात है कि कोई उसको कैसे और कब करता है।
प्यार एक खूबसूरत अहसास है। जो अपनी खुशबू से हमारी जिंदगी को हसीन बना देता है। प्यार का कोई नाम नहीं है, धरती पर कोई सजीव ऐसा नहीं होगा जिसमें प्यार अपनी खुशबू न बिखरेता हो। प्यार बदनाम नहीं होता, हां प्यार करने वाले खुद ही बदनाम हो सकते है और इल्जाम प्यार पर लगा देते है। प्यार का कोई एक रूप नहीं है। किसी को किताबों से प्यार है, तो किसी को हथियारों से, तो कोई पत्थर का ही दीवाना हो जाता है क्योंकि उसको पत्थर में भगवान दिखाई देते है। यह हमारी सोच पर निर्भर करता है, हमारा प्यार कैसे और किस ओर रूख करेगा और कहां पर उसकी मंजिल है। कहते है जिस काम को भगवान भी नहीं करा सकते, उसको प्यार करवा देता है।
प्यार तो वह ब्रह्मास्त्र है, जिसका प्रयोग करके कोई भी किसी को चाहे तो सफलताओं की बुलंदियों को छूने को मजबूर कर दे या असफलताओं के गहन अंधकार में ले जाए। अब यह हमारी सोच पर निर्भर करता है कि हम अपने अजीज को किस ओर ले जाना चाहते है।