अश्रु-मन मीत मेरा
अश्रु-मन मीत मेरा
नन्हे नन्हे नेत्रों में भरा है जल शायद सागर से भी अधिक,
लगता यह जल मुझे सबसे प्यारा मन मीत, कहते हैं इसे अश्रु,
हर पल प्रत्येक परिस्थिति में देते साथ ये।
एहसाह भी हो जाय दुख की परछांई का इन्हें,
तो लगते हैं बहने झर-झर नयनों से,
बहा ले जाते एक बड़ा-सा हिस्सा दुख का अपने साथ,
कर देता मेरा प्रिय मित्र मन को हल्का-हल्का।
बिछड़ जाये अपना कोई तब सागर के जल सरीखा ख़ारा पानी,
बहने लगता यूँ मानों आ गया हो सैलाब समुद्र मे,
चुपके से उद्वेलित हृदय से उठा दर्द का टुकड़ा,
ले जाता सखा मेरा अनजान दिशा की ओर,
जैसे जैसे सैलाब होता जाता कम,
होने लगता प्रवेश शान्ति का हृदय में।
होती हैं आन्दोलित भावनाएँ हृदथ में जब-जब,
जलने लगता है मन अग्नि से आन्दोलित भावनाओं की,
तब-तब बुझा देते अश्रु अग्नि को बरस नेत्रों से।
मिल जाय बरसो बाद यदि अपना कोई,
करने को स्वागत उनका,
लुढ़क पड़ते हैं अश्रु अपने उदगम स्धान से,
कहलाते ये आँसू ख़ुशी के।
प्रसन्न मन को करते ये और अधिक प्रसन्न,
ज्वाला दुखी मन की कर देते शान्त,
बरस कर उद्विग्न मन पर कर देते स्थिर उद्वेगना मन की,
है अश्रु उत्तम सख़ा मेरा, रहता प्रतिपल संग मेरे,
न देनी पड़ती है आवाज़ ऑंसूओं को,
स्वत: ही वस्तुस्थिति के अनुसार,
लगते हैं झरने मन मीत अश्रु मेरे नेत्रों से।।
