हस्ताक्षर
हस्ताक्षर
हम बदलते हैं
वक़्त के साथ
वक़्त के हाथों
बदलता है
हमारा अपना हस्ताक्षर
बैंककर्मी हमें कम
हमारे हस्ताक्षर को अधिक देखते हैं
जब हम नहीं कर पाते
कोई लेन देन
या बाधा आने लगती है उसमें
कभी अपनी उँगलियों को देखते हैं
तो कभी अपने हस्ताक्षर को
जूझते हैं हम अपने आप से
हम वही रहते हैं
और हमारी पहचान
भटक जाती है कहीं
हम घबरा जाते हैं
ख़ुद की पहचान के लिऐ
मगज़मारी बढ़ जाती है
कोरे कागज़ कई
काले कर डालते हैं
एक अदद हस्ताक्षर के लिऐ
मगर हमारा मूल हस्ताक्षर
हमें वापस नहीं मिलता
जैसे हम
दूर दूर छिटके रहते हैं
अपने मूल निवास से
हम भूल जाते हैं
पहचान का संकट
गहराने लगा था
तब से ही
जब हमने पहली बार
अपनी देहरी लाँघी थी ।