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Usha Gupta

Others

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Usha Gupta

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धर्मांधता

धर्मांधता

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धर्म जीवन का पथ प्रदर्शक बन 

कराता परिचय विभिन्न मार्गों से,

देता हौसला गिरते खा ठोकर यदि,

उठ फिर चलने को करता प्रशस्त राहें हमारी, 

बन रोशनी कर देता चहूं ओर उजाला।


हैं धर्म अनेक परन्तु गन्तव्य उनका एक,

अल्ला, गौड, वाहे गुरू या ईश्वर,

हैं नाम सभी उस परम शक्ति के,

की है रचना ब्रम्हाण्ड की जिसने,

मिलती परम शान्ति उस को,

टेके माथा जो परम शक्ति को,

मंदिर मस्जिद चर्च या गुरूद्वारे में,

हैं धाम सभी उसके, है नहीं अन्तर कोई।


कर दी हैं खड़ी दीवारें चन्द मुट्ठी भर लोगों ने

मंदिर मस्जिद चर्च और गुरूद्वारे के बीच,

बांट दिया परम शक्ति को भी

देकर नाम विभिन्न- विभिन्न, 

कहते हैं मिलता अल्लाह केवल मस्जिद में,

ईश्वर का स्थान है मंदिर में,

तो मिलेंगे गौड केवल चर्च में,

हैं विराजे गुरु ग्रंथ सहिब गुरूद्वारे में।


डालने लगे दरार विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के मध्य

बन ठेकेदार धर्म के,

हो धर्मांध समझते धर्म को अपने सर्वश्रेष्ठ

और निकृष्ट अन्य सभी धर्मों को,

करते केवल तिरस्कार व अपमान ही नहीं

अनुयायियों का दूसरे धर्मों के,

वरन् चूकते नहीं करने से हिंसात्मक एवं घृणित कार्य भी, 

ढूंढते रहते अवसर जबरन करने धर्म परिवर्तन लाचार-असहाय प्राणियों के।

तैरते रहते धर्मांध सतह पर धर्म की,

लगा लें गोता यदि धर्म की पवित्र नदी में तो देख सकेंगे स्पष्ट,

नष्ट हो जायेगी धर्मांधता, मिट जाएंगे भेद-भाव सभी।


सिखाता नहीं धर्म कोई हिंसा या घृणा,

राह हैं अलग-अलग परन्तु है गन्तव्य एक, 

है निचोड़ सब धर्मों का एक,

पालन हो धर्म का किसी भी परन्तु

नवाओ शीश सभी धर्मों को और उनके गुरुओं को।

करो न भेदभाव मानव और मानव के मध्य,

हो प्रेम और आदर सभी प्राणियों का।


किया है न कोई अन्तर मानव और मानव के बीच

जगत निर्माता ने,

फिर है क्या अधिकार हमें बाँटने का

मानव को मानव से धर्म के आधार पर

फैला आग नफ़रत की,

खो दृष्टि अपनी बन धर्मांध।।



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