वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे
जैसे जैसे उम्र बढ़ती जा रही है,
हम भी थक रहे है और हमारे दोस्त भी थक रहे है,
हर कोई अपनी अपनी परेशानियों में परेशान है,
हम भी थोड़े थोड़े परेशान से हो गए है,
उलझने जिंदगी की सुलझा रहा है हर कोई,
हम भी अपनी उलझनों में उलझे हुए से है,
किसी को अपने बच्चो की फिक्र है,
किसी को कर्ज़ चुकाने की फिक्र है,
किसी को बच्चो की शादी तो किसी को पढ़ाई की चिंता है,
हम भी अपनी मजबूरियों में उलझे हुए है,
वक्त ही नही मिलता किसी से मिलने का,
हर कोई वक्त के आगे परेशान से है,
वो भी क्या दिन थे जब लगती थी महफिले दोस्तो की,
वो भी क्या दिन थे जब खुशियो का माहौल होता था..