हाँ, मैं इंक़लाब लाऊंगा
हाँ, मैं इंक़लाब लाऊंगा
हाँ मैं इंक़लाब लाऊंगा
देश के उन गद्दारों से, ज़ुल्म के ठेकेदारों से
मक्कार सियासतदानों से, पल-पल टूटे अरमानों से
बद्ज़ुबानों से बेईमानों से, महंगी झूठी उन शानों से
मैं हक की अलख जगाऊंगा
हाँ मैं इंक़लाब लाऊंगा...
मज़हब के ठेकेदारों से, भड़के ज़हरीले नारों से
ज़हन में बसे अंधेरों से, नफ़रत की उठती लहरों से
लुटेरों से चोरों से, उन बेमतलब के शोरों से
मैं हाफिज़ बनकर आऊंगा
हाँ मैं इंक़लाब लाऊंगा...
मज़लूम पर होते ज़ुल्मों से, भाषण देते कमइल्मों से
बचपन खोती उन बातों से, बर्तन धोते नन्हे हाथों से
दौलत के नशेड़ी अंधो से , उन काले गोरखधंधों से
मैं रौशन दीप जलाऊंगा
हाँ मैं इंक़लाब लाऊंगा...
दहेज़ में जलती औरत से , लालच में अंधी गैरत से
मां के निकले आंसू से, बाबा के झुके उन बाज़ू से
बेकारी से लाचारी से, तेरी हर झूठी मक्कारी से
मैं सबक तुझे सिखाऊंगा
हाँ मैं इंक़लाब लाऊंगा...
बेटी-बेटों के भेद से, रिवाज़ों की उन कैद से
हर पल सुनते उन तानो से, पल-पल मरते अरमानो से
बेड़ियों से ज़ंजीरो से, आँखों से बहती झीलों से
मैं सारा क़र्ज़ चुकाऊंगा
हाँ मैं इंक़लाब लाऊंगा...