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Meera Parihar

Others

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Meera Parihar

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बसंत

बसंत

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बघरो वसंत जैसे आयो कोई संत,खड़ो खेतन में मन कूं लुभात है। 

छोटे -बड़े,नर-नारी,पशु-पक्षी ,जे मन सबहिंन कूं बहु हरषात है।।


उड़त पराग जिमि खेलें हरि फाग,रंग पीरो,सं पियरी पे पीरो-पीरो छात है।

पिहु -पिहु बोले पिक,मुरला की पिकहाँ-पिकहाँ हिया में समात है।।


आयो रे बसंत भयो शीत को अंत, ऋतु फागुन चहुंदिश फागुन गीत गात हैं।

चुहुक चुहुक चहुंओर मचो शोर ,ये खगन की बोली मोहे बाग में बुलात है।


मादक महक मेरे नथुन समाय 'मीरा' मेरो रोम- रोम महकात है।

अमबा पे बोर लागे, जूही,गुलाब चंपा, रोजमेरी,भ्रमर-मधुप मन भात है।



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