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Madhu Vashishta

Others

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Madhu Vashishta

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पुरानी डायरी

पुरानी डायरी

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समय की मांग थी,जवानी का जोश था।

मौज मस्ती में उलझे हुए थे खुद का ही कहां होश था।

रात को सोने से पहले तन्हाई में पूरे दिन के पलों को डायरी के पन्नों पर उकेरते थे।

कुछ यादें याद आ जाती थी और उसी में ही कुछ नए पल जोड़ते थे।

दौर व्यस्तताओं का भी आया,

नए बंधनों में में बंधे, बच्चों का भी साथ मिला और घर और दफ्तर के झमेलों में पड़े।

जिम्मेदारियां इतनी बढ़ी कि डायरी को भूल गए।


यूं ही काम निपटाते रहे ,दिन महीने साल भी तो बीत गए।

व्यस्तताओं में जब कभी भी डायरी दिखती थी, कुछ उलहाने शिकायतें जोड़ देते थे।

फिर कभी याद ना रहा कि उस डायरी को कहां छोड़ देते थे?


व्यस्तताओं का दौर भी तो अब जीवन में खत्म हुआ।

कर्तव्य सब पूरे हुए, मानो खुद का ही पुनर्जन्म हुआ।

किसी पुरानी गठरी में से आज वही डायरी निकल कर आई है।

हैरान हूं देखकर क्या यह मेरी लिखाई है?


जिसने लिखी होगी वह शायद कोई और ही थी,

हैरान हूं ,इसमें लिखी वह उलहाने और शिकायतें किस दौर की थी?

इसमें लिखी बातें आज बिल्कुल फिजूल ही है।

जाने कहां गए वह लोग जिनके बारे में लिखी इसमे बातें है।


छोड़ो, इस डायरी को देख लूंगी कभी और,

ना हीं वह मन है, ना ही वह परिस्थितियां और ना ही आज वह दौर।

लेकिन आज भी खूबसूरत है,

नई डायरी में ही अब लिख लूंगी मैं कुछ और।


कभी मन करा तो अपनी पुरानी डायरी को भी पढ़ लूंगी मैं।

आज तो पुरानी यादों में खोने की बजाए,

आगे के जीवन को सफल करने के लिए सोचते हैं कुछ और।



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