दुःख !
दुःख !
मेरे पास क्यूँ नहीं आता ?
शायद तू मुझे भी
दूसरों जैसा समझता है ,
तू किसी को नहीं भाता
ये मुझे है पता .
पर मैं तो तुझे स्वयं
दे रहा हूँ निमंत्रण ,
मुझे पता है
रहीम ने भी किया था तेरा वंदन !
पढ़ कर ये निवेदन
शायद और भी
आने लगें तुझे आमंत्रण !
तेरे आने से मेरा यह
अवश्य हल्का हो जाऐगा ,
टन भर का तन
गालों पर चढ़े गाल
जब थोड़ा होंगे कम,
तभी खुल पाऐंगे
मेरे मूँदे नयन !
और यह छप्पन इंची
कमर हो जाऐगी थोड़ी कम
लगने लगेंगे तब
सस्ते - छोटे कमरबंद !
क्या तुझे पता है
वज़न घटाने की दुकानों में
कितनी है महँगाई !
इसीलिऐ कहता हूँ -
ऐ दुःख तू
मेरे पास आजा भाई !
तेरे आने से शायद
मेरी इंसानियत जाग जाऐगी ,
सच्चे मित्रों से
परिचय कराऐगी !
मुझे यक़ीं है मेरी आँखों में
और बढ़ेगा तेरा सम्मान ,
बस देर न कर अब
आजा तू बन मेरा मेहमान !!