चाँद या सूरज !!
चाँद या सूरज !!
कल रात अचानक घर में मेरे
फट - सा गया ज्वालामुखी ;
जब भावनाओं में बहकर मैंने -
पत्नी को कह दिया चंद्रमुखी !
बोली बिगड़ कर –
" मैं क्या मिट्टी - पानी से सनी हूँ ?
केवल आध्यात्मिक सोच में
मिट्टी से बनी हूँ !
माना मेरा चेहरा
हो गया गोल मटोल ,
पर मुआ चाँद तो
लगता है ठोस फुटबॉल."
मैंने समझाया –
" मोहतरमा तुम १९६९ की घटना
को दिमाग से निकाल दो ,
अपोलो - ११ या बाद की खोजों पर
बस मिट्टी डाल दो ;
याद करो हमारे
बचपन वाला प्यारा- प्यारा चाँद ,
नानी की कहानी वाला
पूरणमासी का भोला चाँद !
"महाकवियों को जिसे देखकर
आता था प्रेयसी का ध्यान ;
मैं तो उसी चाँद से तुलना
कर रहा था मेरी जान !
"वैसे तो आजकल
तुम्हारा तेज़ है सूरज के जितना !
तुम्हारे आगे बन गया हूँ
मैं एक पिदना !!
आओ फिर एक बार
आज गीत ख़ुशी के गाओ ,
'चाँद -सी महबूबा हो मेरी' -
सपना सच कर दिखाओ ! "