अब और नहीं...
अब और नहीं...
बस, बहुत हुआ, अब और नहीं!
निर्भया, प्रियंका के बाद,
ये घिनौना कृत्य... अब और नहीं।
सर्दी की धुंध भरी रात,
और सुनसान राहें
क्यों, इतना भय पैदा करती है?
क्या कारण था? क्यों थी तुम बाहर?
इन सवालों का कोई तुक नहीं।
अपने ही घर-आंगन में
क्यों वो सुरक्षित नहीं?
इस कृत्य के जो अपराधी
बेख़ौफ़, स्वतंत्र विचरते है।
सज़ा और अंजाम का
क्यों उनको कोई डर नहीं?
मां, बहन, बेटी से पहले
है वो गरिमामय नारी,
करुणामयी, जन्मदात्री से
अब बनेगी विध्वंसकारी
दीन, बेचारी, अबला और
न ही वो कमजोर है,
भूल गए क्या रूप उसके?
शक्तिरूपेण, कालिका,
चामुंडा जैसे कई नाम और है।