मेरे सपने -मेरे अपने
मेरे सपने -मेरे अपने
एक दिन भगवन मेरे सपने में आये
कहने लगे मांगो क्या मांगते हो,
जो तुम्हे अच्छा लगे, जो तुम्हे भाये।
मैने कहा भगवन,
मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए।
बस दुनिया के उद्धार के लिए
आप आ जाइए।
भगवान कहने लगे उसके लिए अभी वक़्त है,
फिर भी कुछ दुःख हर लेते हैं।
चलो वैसे ही दुनिया को थोड़ा बदल देते हैं।
आदमी के पंख लग गए
और वो आसमान में उड़ने लगे।
पक्षी जिन्हे आशियाना चाहिए था
वो आदमी के घरों से जुड़ने लगे।
शेर बकरी एक घाट पे पानी पीने लगे।
सब लोग ख़ुशी ख़ुशी मिलजुल कर जीने लगे।
मौसम हर वक्त सुहाना रहने लगा।
कहीं कल कल नदी, कहीं झरना बहने लगा।
आपस में झगड़ा ख़तम हो गया,
भाईचारे का राज था।
सब लोग संपन्न थे,
मानो सब के सर पर ताज था।
जब नींद खुली तो पाया
कि ये सब तो एक सपना था।
पर कितना सुन्दर और कितना अपना था।
मैं सोचने लगा क्या
ये सब सचमुच में हो सकता है?
क्या आदमी अपने स्वार्थ को खो सकता है?
चलो दुआ करें भगवान से
हम सब मिल जुल कर।
हमारे दुःख छीन ले वो और
खुशियाँ दे हमें भर भर।
ऐसी दुनिया बनाने के लिए
हमें भी कुछ करना होगा।
कुछ गलत मन में आते ही
भगवान से डरना होगा।