बारिश के वो लम्हे
बारिश के वो लम्हे
वो जम के बरसना वो रुक रुक फुहारें
वो फूलों का हिलना वो दिलक़श नज़ारे
वो बिजली कड़कना वो बच्चों का डरना
वो सहमे हुए फिर घर से निकलना
वो बारिश की बूंदों से सूरज का लड़ना
वो किरणों का इंदरधनुष में बिखरना
वो पत्तों का बहते हुए पानी में बहना
वो पानी का घंटों बाहर खड़े रहना
वो गाड़ी का कपड़ों पे छींटे उड़ाना
वो नाली में पानी की कश्ती बहाना
वो मौसम का मिनटों में होना सुहाना
वो पेड़ों के पत्तों का यूँ खड़खड़ाना
वो पैरों से गड्ढों में पानी की छप छप,
वो चाय की चुस्की और पीना भर कप कप
वो घी में समोसे पकोड़ों को तलना
वो जलदी से खाना और मुहं का वो जलना
वो मौसम में सोंधी सी खुशबू का डलना
वो मौसम का झटके से करवट बदलना
वो मन का भटकना,उन्हें याद करना
वो उनका न मिलना, ठंडी आहें भरना
वो छाते का उड़ना और लट का बिखरना
वो भीगे हुए तन का शरमा के चलना
वो काली घटा का उमड़ के वो छाना
वो बारिश का मिनटों में तेजी से आना
ये बारिश जो हम सब को कितनी है भाती
ये गर्मी हटती और खुशियां दे जाती