कळलंच नाही
कळलंच नाही
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मन माझं झुरत होतं
कुणासाठी मरत होतं कळलंच नाही --- ||
फुलासारखं फुलत होतं
हवा नसताही डुलत होतं कळलंच नाही --- ||
वादळ वारं झेतीत होतं
गुरागत का फिरत हेतं कळलंच नाही --- ||
चद्राच्या रात्री फिरायच होतं
आकाशात जरा चालायच होतं कळलंच नाही --- ||
गीत मला गायचं होतं
ओठावर का येत नव्हतं कळलांच नाही --- ||
वेड जीवाला लावत होतं
कुणा मागं धावत होतं कळलंच नाही --- ||
शांत कुठ बसत नव्हतं
जीवास का जाळत होतं कळलंच नाही --- ||
स्वप्नात सखे भेटायच होतं
काही तरी बोलायचं होतं कळलंच नाही --- ||