योजनाएं सरकारी क्यों न असरकारी
योजनाएं सरकारी क्यों न असरकारी
मैं प्रात: पांच बजे घर की छत पर ही योगासन पूरे करके शवासन कर रहा था कि मेरा छोटा बेटा मेरे पास मेरा फ़ोन लेकर पहुंचा और मुझे फोन देते हुए बोला-"पापा , अभी होशियार अंकल का फोन आ रहा था। कह रहे थे कोई जरूरी बात करनी है।अभी तो फोन डिस्कनेक्ट हो गया है आप डायल करके बात कर लेना।"
"ठीक है,बेटा।"- कहते हुए मैंने उससे फोन लेकर होशियार का नंबर मिलाया।घंटी बजते ही उधर से होशियार जी ने रिसीव किया।उनकी बड़ी ही हर्षोल्लास व्यक्त करती हुई आवाज सुनाई पड़ी।
" हैल्लो,सर जी।क्या हाल-चाल हैं। अच्छा योग और आसन का कार्यक्रम चल रहा है।"- उनकी हर्षध्वनि में जोरदार हंसी का भी मिश्रण था।
मैंने कहा-"होशियार जी आपने पूरी होशियारी का परिचय देते हुए सही अनुमान लगाया है।केवल सर कहना ही अपने आप में पूरा हो जाता है।सर के आगे जी लगाने की आवश्यकता नहीं होती है.. ।"
मेरी बात पूरी होने से पहले ही वे बोल पड़े-"सर मैं तो केवल सर जी ही कहता हूं कुछ तो सर जी जी तक कहते हुए सुने जाते हैं। उनके बारे में आपके क्या विचार हैं?"
मैंने कहा-" ऐसे लोगों के बारे में मैं यही कहूंगा कि उनकी होशियारी हमारे होशियार से एक जूता मेरे कहने का मतलब है कि एक कदम बढ़कर ही है। बताइए क्या बात करनी है? बेटा कह रहा था कि आप कोई जरूरी बात करना चाह रहे हैं।"
वे बोले-"आज के पेपर में आया है उसके अनुसार हमारी सरकार कोरोना संक्रमण से जान गंवाने लोगों के परिजनों को बहुत बड़ी सहायता करने जा रही है। सोचा इसके असर के बारे में आपसे कुछ चर्चा कर ली जाय। अब तो पांच बज चुके हैं और आपका योगाभ्यास पूरा हो चुका होगा।"
मैंने कहा-" तुम्हारा अनुमान एकदम सही ही है।इस वैश्विक महामारी कोविड के समय विविध प्रकार की घोषणाएं केंद्र एवं अनेक राज्य सरकारें कर रही हैं। हमारी सरकार किसी से पीछे क्यों रहे? यह घोषणाएं सुनने में तो बहुत ही लोक लुभावन और कल्याणकारी प्रतीत होती हैं।पर वास्तविकता के धरातल ये उतनी कारगर साबित हो पाती हैं जैसे ऊंट के मुंह में जीरा। इनका सही लाभ नगण्य पात्रों को ही बड़ी मुश्किल से हो पाता है।इनका लाभ प्राप्त करने के लिए जो शर्तें रखी जाती हैं उनके लिए पात्र आधे -अधूरे लोगों तक आधी-अधूरी ही जानकारी पहुंचती या यूं कहें कि पहुंचाई जाती है।इनके पात्र लोगों में अनपढ़ या अल्पशिक्षित दिहाड़ी मजदूर या नौकरी करने वाले लोग ही होते हैं।जिन्हें अपने काम से सीमित अवधि से अधिक छुट्टी लेना एक बड़े घाटे का सौदा साबित होता है।
होशियार जी बोले-"अगर योजना का फायदा उठाना है तो आफिस तो जाना ही पड़ेगा।होते शेर के मुंह में शिकार अपने आप तो घुस नहीं जाएगा।"
मैंने ऑफिसों के चक्रव्यूह के बारे में उनको जानकारी देते हुए उन्हें समझाने की कोशिश की-" योजना से सम्बद्ध नौकरशाही और अफ़सरशाही इनके अल्पज्ञान और समय न दे पाने की स्थिति का नाज़ायज फायदा उठाते हैं।एक बार में सारी जानकारी न देकर कार्यालय के इतने चक्कर कटवाते हैं कि बेचारा हार-थककर बैठ जाता है या कार्यालय के आसपास कार्यालय की कृपा प्राप्त दलालों की शरण में जाता है। दलाल उस पर बड़ा ही एहसान जताते हुए सुविधा शुल्क के नाम पर मोटी रकम ऐंठते हैं।कई बार धन लेकर भी उनका काम ठीक से न होकर त्रुटिपूर्ण होता है। बेचारा गरीब इस गैर कानूनी कार्य की शिकायत करने का साहस भी नहीं जुटा पाता क्योंकि भ्रष्टाचार जड़ से लेकर ऊपर तक व्याप्त है।"
उन्होंने अपना एक ओर प्रश्न मेरे सामने रखा-"आप यह समझाना चाह रहे हैं कि ऐसी योजनाओं का किसी को कोई फायदा होता ही नहीं।"
मैंने उन्हें समझाने का प्रयास करते हुए कहा-" नहीं, ऐसा तो मैं नहीं कहता हूं।मेरा ऐसा मानना है कि इन योजनाओं का लाभ प्राय: ऐसे चालाक लोग उठाते हैं जो वास्तव में पात्र ही नहीं होते। चूंकि ऐसे लोग आवश्यक जानकारी, दलालों से सम्पर्क के सूत्र और रिश्वत देने के लिए इनके पास धन भी होता है।धन लेकर इन अपात्र लोगों को पात्र बनाकर वास्तविक लाभार्थियों के हिस्से की मलाई नौकरशाहों की मदद से लुटा दी जाती है।सरकारों द्वारा ऐसे प्रयास लम्बे समय से किए जाते रहे हैं।पर बिचौलिए आज सरकार द्वारा दिए गए एक रुपए में से अब पचासी पैसे भले ही जन जागरूकता के कारण न खा पा रहे हों लेकिन अभी भी काफी घोटाला हो रहा है। लोगों में जन जागरूकता बढ़ी है लेकिन बहुत सारा इस मामले में किया जाना बाकी है।यदि कोई सरकार पारदर्शिता लाकर इन बिचौलियों को हटाने का प्रयास करती है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर तथाकथित बुद्धिजीवियों और नेताओं के साथ धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया जाता है।सोशल-मीडिया के द्वारा झूठा-सच्चा प्रचार-प्रसार कर जनता को दिग्भ्रमित कर दिया जाता है।
होशियार जी थोड़ा सा मायूस आवाज़ में एक लम्बी सी आह भरकर बोले-"जब आप जैसे लोग ऐसी निराशाजनक सोच रखेंगे तो जनता- जनार्दन का कल्याण कैसे होगा? आखिर लोग करें भी तो क्या करें?"
मैंने कहा -"मायूस होने या हाथ पर हाथ रखकर बैठने से काम तो चलने वाला नहीं है।आज सबसे अधिक आवश्यकता शिक्षा के साथ सही समझ की है। लोगों को प्रयास करके अपने आप को यथासंभव बौद्धिक, सामाजिक, आर्थिक रूप से सक्षम बनाना होगा ताकि कोई उनका शोषण न कर सके और सरकारी योजनाओं का सकारात्मक असर हो।अभी तक सरकार की योजनाओं हममें से ज्यादातर लोगों का यही विश्वास है किसरकारी योजनाएं असरकारी नहीं होती हैं अर्थात उनका असर नगण्य होता है।
वे बोले-" सरकारें इतनी मेहनत करती रही हैं तो क्या यह मेहनत व्यर्थ गई।आप ही तो कहते हैं कि मेहनत नहीं जाती बेकार किसी की।"
मैंने समझाया-"यदि सचमुच ईमानदारी से ऐसी योजनाओं का कार्यान्वयन हुआ होता तो आजादी के इतनी लम्बी समयावधि के बाद गरीबों के कल्याण हेतु चीख-पुकार मचाने वाली अधिकांश सरकारें कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं कर सकीं हैं,उसका सकारात्मक प्रभाव दिखाई देता।केवल नेताओं और बिचौलियों का ही कल्याण हो पाया है।"
होशियार जी ने अपनी होशियारी का परिचय देते हुए अपनी बात रखी-"फिर आज के समय की मांग के अनुरूप जनता को चाहिए कि सभी लोग जागरूक बनें और हम सब लोग समस्त जानकारी प्राप्त कर अपने कर्त्तव्य पूरे करते हुए अपने अधिकार प्राप्त करें।एक बार थोड़ा सा धैर्य धारण कर कष्ट उठाकर सही मार्ग तलाश लें फिर यह आसान हो जाएगा। मैंने ठीक ही कहा है न,सर जी।मेरा मतलब है हर।"
मैंने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा-"बिल्कुल बड़ी ही होशियारी की बात की है । मेरे होशियार जी ने।"
"जय हिन्द...जय भारत....भारत माता की जय.... वंदेमातरम...."-हम दोनों ने एक साथ बोला।
पत्नी का आदेश मिला ,चाय बन गई है। जल्दी नीचे आ जाओ और फोन डिस्कनेक्ट कर आदेश पालन में मैं तेज़ कदमों से सीढ़ियां उतरने लगा।
