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Ashish Anand Arya

Children Stories

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Ashish Anand Arya

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ये हत्यारे तो नहीं!

ये हत्यारे तो नहीं!

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"अरे वाह!"आइसक्रीम देखते ही बच्चे चिल्ला पड़े थे।

बच्चों की खुशी में धीर आज भी खुश था। पर उतना नहीं, क्योंकि वो अब खुद बच्चा नहीं था।

कल तक वो बड़े शौक से आइसक्रीम की ठिलिया चलाता था। जब कभी खुद से छोटी उम्र के बच्चे पास आते, वो बड़ा खुश हो जाता था। उसके कोई छोटे भाई-बहन नहीं थे। हर छोटे को करीब देखकर उसे महसूस होता, जैसे भगवान जी ने दो पल को उसके लिए कोई तोहफा भेज दिया हो। पर सब होते-होते अब वक्त बदल चुका था। आज वो बड़ा हो चुका था। उम्र में छोटों को देखकर उसे अब जलन होती थी। खुद के ठेले पर से जब वो उम्र में कहीं छोटे अमीर लड़कों को लड़कियों के लिए आइसक्रीम खरीदते देखता, ख्यालों में बस मन मसोस कर रह जाता।

सड़क किनारे ठेला लगाये-लगाये वो सोच रहा था। फिर अचानक ही करीब खड़े दोस्त से बोला-

‘‘सोचता हूँ, रिक्शा ले लूँ।‘‘

‘‘सोच ले। मेहनत का काम है। ज्यादा वजन, ज्यादा लंबा खींचना पड़ेगा।‘‘ दोस्त की बात में अनुभव था। पर धीर के पास भी तो अपने तर्क थे-

‘‘मेहनत ज्यादा है, पर मेहनताना तो पक्का है। कब तक आइसक्रीम की ठिलिया चलाऊँगा? सर्दियों में तो वैसे भी तंगी चढ़ ही जाती है। ऊपर से माल न निकला, तो हर्जा भी अपने ही जिम्मे।" बोलते-बोलते वो पल भर को ठिठका। ऊपर आसमान की ओर निगाहें गयीं और फिर बात होठों पर आ ही गयी-

‘‘कम से कम रिक्शे पर मर्जी तो अपनी है। अमीर लड़कियाँ बैठती हैं।‘‘ धीर की आँखें गोल नाचीं-

‘‘अकेली आये, तो बिठाओ। कोई साथ में आकर भाव खाए, तो न कर दो। ऐसा तो नहीं है न कि बात नहीं सुनी, तो बिक्री नहीं होगी। एक नहीं, तो दूसरी आयेगी। आखिर अमीर लड़कियाँ पैदल चलती कहाँ हैं?‘‘

सुनते हुए दोस्त का सर हाँ में हिलता, उससे पहले ही दोनों की गर्दनें घूम गयीं।

सामने सड़क पर जुट गयी भीड़ के बीच से शोर आ रहा था। दोनों दौड़कर आगे जा पहुँचे। एक मोटर-बाइक सड़क पर नीचे गिरी पड़ी थी। बगल में एक रिक्शा खड़ा था। पुलिस वाले निकर और बनियान पहने लड़के को डंडों से पीट रहे थे। और वहीं बगल में खड़ा एक मोटा आदमी चिल्लाये जा रहा था-

‘‘चमड़ी उतार दो, तब ही शायद सुधरें ये शोहदे की औलाद। मैं देख रहा था ,हाॅर्न पर हाॅर्न बजाये जा रहा था। पर आँखें खाली हों, तभी तो देखेंगे न, चला रहे हैं रिक्शा और नजर टिका रखी है, रिक्शे पर बैठने वाली पर। इतनी बड़ी बाइक नहीं दिखायी दी। आकर सीधे ठोक दी। मरम्मत कराने की बात कहूँगा, तो गरीब बन जायेंगे। आँख लड़ाते वक्त गरीबी नजर नहीं आती? और फिर बोलते हैं, गरीब होकर मैंने कौन सा जुर्म कर दिया!‘‘



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