Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Others

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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उसने कहा था (2) ..

उसने कहा था (2) ..

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जहाँ मैंने जन्म लिया था, जहाँ वैभव एवं विलासिता से भरपूर जीवन का मुझे वरदान मिला लगता था, जहाँ मेरे अपने और उनका प्यार मिला था, उस माटी को हमेशा के लिए मैंने अलविदा कह दिया था।

जहाज़ में खतरनाक यात्रा पर निकलते हुए मुझे आगे क्या होगा उसका कोई भय नहीं सता रहा था। मेरे आँखों के समक्ष मेरे आइलैंड का समृध्दि वैभवपूर्ण, आधुनिक और उन्नततम, संपूर्ण परिदृश्य घूम रहा था, जिसमें पूरे सुविधा-साधन, यथावत विध्यमान थे, मगर जिनके उपभोगों का आनंद लेने कोई मनुष्य उपलब्ध नहीं थे।

आगे का समय अत्यंत नाटकीय रहा था। पहला दिन बिना ज्यादा यत्न के समुद्र में अकेले बीत गया था। रात अंधेरे में भी जहाज़ अनजान दिशा में बढ़ता जा रहा था। मैं जागते-सोते हुए, जहाज चालन जारी रखे हुई थी।

शायद तब मैं निद्रा अधीन थी कि एकाएक, एक तीव्र शोर के साथ जहाज़ तीव्रता से डाँवाडोल होने लगा था। मेरी नींद खुल गई थी। दिमाग सक्रिय हुआ था। लगता था कि मेरा जहाज़, किसी विशाल ब्लू व्हेल मछली से टकरा गया था।

जहाज़ एक तरफ झुकने लगा था। शायद उसमें पानी भर रहा था। आनन फानन ही मैंने लाइफ जैकेट पहनी थी। कुछ खाने की सामग्री और पेट्रोल कैन एक लाइफ बोट में डाली थी और मैंने जहाज़ को छोड़ दिया था।

कुछ देर आगे तो मैं जल राशि से जूझती रही थी। फिर थकान से चूर, अचेत हो गई थी। मेरी चेतना जब लौटी तो मैंने स्वयं को, किसी जहाज़ के केबिन में बेड पर लेटे पाया था। आसपास कोई दिखाई नहीं पड़ा था। मैंने उठने की कोशिश की थी लेकिन कमजोरीवश मेरा दिमाग चकराया था और मैं बिस्तर पर वापिस गिर गई थी।

कोई घंटे भर बाद, यूनिफार्म में सुसज्जित, एक युवती आई थी। उसे देख मुझे प्रसन्नता हुई थी कि धरती पर मेरी आशंका के विपरीत मेरे अतिरिक्त भी मानव अस्तित्व बरकरार है।

उसने मुझे पीने को फ्रूट जूस दिया था। खुद के, परिचय में बताया था कि जिसमें इस समय हम सवार हैं, वह इस भारतीय समुद्री जहाज़ की कैप्टन है। उसने यह भी बताया कि उन्होंने, कल रात अपने जहाज़ के पास ही, मेरी बोट जिस पर मैं अचेत पड़ी थी, देखी थी। और उन्होंने, मुझे बचाया (Rescue किया) था।

मैं, पिछले 16 घंटे से अचेत रही थी। उनका जहाज़, भारत लौट रहा है और जहाज़ अभी मुंबई पोर्ट से 9000 से अधिक नॉटिकल माइल्स की दूरी पर है। जहाज़ को मुंबई पहुँचने में 35 दिन लगने हैं।

मेरा बच जाना एक चमत्कार जैसा था। और मेरे लिए, सुखद आश्चर्य यह था कि अपने आइलैंड पर मौत के ताँडव के साक्षात्कार से, मेरे मनुष्य अस्तित्व मिट जाने की आशंका निर्मूल सिद्ध हुई थी।

मैंने आगे के दिनों में, कैप्टन से, अपने आइलैंड की विभीषिका और अपनी मानसिक दशा शेयर की थी। कैप्टन बहुत प्यारी थी, उसने जहाज़ पर ही मेरा इन्फेक्टेड होने की संभावना का परीक्षण करवाया था। जो नेगेटिव आया था।

उसके व्यवहार और आत्मीयता से मैं उस पर मोहित हुई थी। मुझे अनुभव हुआ था कि ये भारतीय अत्यंत अच्छे इंसान होते हैं।

कोविड-19 के भारत सहित विश्व के ताजा अपडेट, वह मुझसे शेयर करती रही थी। जहाज़ पर आने के दिन, भारत में कोविड-19, प्रथम चरण में था। लेकिन हमारा जहाज़, जब मुंबई पोर्ट पहुँचा था, तब मार्च की 23 तारीख थी और इन्फेक्शन यहाँ तृतीय और खतरनाक चरण में प्रवेश कर चुका था।

कैप्टन ने ही गृह मंत्रालय से मेरे संबंधित विवरण देते हुए, भारत में मेरे प्रवेश दिलाने की औपचरिकतायें पूरी करते हुए मुझे अनुमति दिलाई थी। यहाँ सरकार की, मेरे जैसे अभागे शरणार्थी के प्रति उदारता ने, मुझे बेहद प्रभावित किया था।

मैंने अपने शैक्षणिक पाठ्यक्रम में भारतीय भव्य संस्कृति के विषय में पढ़ा था। जिसका साक्षात दर्शन, मुझे अब हो रहा था।

आज, 24 मार्च 2020 है। मुझे बताया गया है कि देश में कोरोना वायरस से निपटने के लिए कई प्रतिबंध लगाए गए हैं। संक्रमण चैन भंग करने के लिए कई सेवायें और कामकाज स्थगित किये गए हैं। देश में जागृति और सहयोग के लिए, नागरिकों से विभिन्न तरह के आह्वान और सहयोग की अपील की जा रही हैं। 

मुझे भी इसी प्रयोजन से, अभी एक टीवी न्यूज़ चैनल के कार्यालय में लाया गया है। उद्घोषिका मुझे अपने साथ बीती सारी स्थिति दर्शकों को बताने को कहती है।

उसके कहे अनुरूप उसने कहा था, के पिछले भाग में वर्णित सारी आप बीती बयान कर चुकी हूँ तथा अंत में मेरे रक्षक देश के प्रति अनुग्रह बोध में एक मार्मिक अपील करते हुए, मैं कह रही हूँ -

मेरे रक्षक और शरणदाता, भारत देश के मेरे समस्त प्यारे नागरिक, ज्यादा दिन नहीं हुए, आज से लगभग दो महीने पूर्व तक, मेरी नस्ल, मेरे मज़हब, मेरी अमीरी, मेरी खूबसूरती, मेरी आधुनिकता, अन्य पर हासिल हमारी अग्रणी उन्नति और मेरी मातृभाषा, ऐसे कई अभिमान और भेद की परतें, मेरे दिमाग पर चढ़ी हुईं थीं। लेकिन जिस विभीषिका ने, हमारे आइलैंड पर से मानव जीवन का नाश कर दिया उसकी साक्षी होने पर मेरी दिमाग पर चढ़ीं समस्त ये परतें खुल गईं हैं।

एक समय मुझे जब यह संशय हुआ कि धरती पर कदाचित मैं ही अकेली मनुष्य तो नहीं रह गईं, तब मेरी सर्वप्रथम फ़िक्र, धरती पर मनुष्य प्रजाति को, लुप्त होने से कैसा बचाये जाए, यह रही है। 

मुझे ख़ुशी है कि भारत की विशाल जनसँख्या अब तक सुरक्षित है। मेरी कामना है कि यह आबादी इस महान भूमि पर कायम रहे। मेरी अपील है कि मुझ भुक्तभोगी की, इस कारुणिक स्थिति से, आप सभी सबक लें तथा अपने दिमाग से सारे भेदभाव मिटा कर, कोविड-19 को हमारे आइलैंड की तरह विकरालता पर पहुँचने से रोक लें।

भोग विलास लोलुपता को कुछ दिन टालें। मेल मिलाप, भ्रमण कुछ दिनों तक स्थगित रखें। इमरजेंसी के अतिरिक्त घरों से बाहर नहीं निकलें। स्वच्छता, बार बार हाथ मुंह साबुन/हैंड वाश से धोना आदि आदत बनायें। हैंडल, दरवाज़े आदि बार बार स्टरलाइज करें एवं मुहँ पर बाँधे जा रहे नकाब/कपड़ों को जल्दी जल्दी धो-सुखा कर प्रयोग करें।  

अन्य सावधानियों में, भारत में प्राचीन समय से उपयोग की जा रही आयर्वेदिक जड़ी-बूटियों एवं औषधीय गुण वाले पेड़-पौधों की पत्तियों और उनकी छालों आदि का सेवन भी करें। भले ही, कोरोना संक्रमण पर इनके कारगर होने के प्रामाणिक लाभ, अभी नहीं बताये गए हैं, मगर इनके लाभकारी रहने की पूरी संभावना है। पूरे आइलैंड में अकेले जीवित बच पाने वाली, मैंने भी वहाँ एक वृक्ष से रिसते तरल का सेवन, द्वीप के संक्रमण के चपेट में आने के दिनों में किया है। अभी समय आपके हाथ में है। इसे हमारे द्वीप जैसी लापरवाही से नहीं बिता दीजिए। अन्यथा हाथ से यह समय निकल सकता है और फिर मेरे जैसे, अपने सभी को खोकर, यही हाथ मलते रह जाने की, पीड़ादायी विवशता हम पर आ सकती है।  

फिर में हाथ जोड़ कर कहती हूँ 

'नमस्ते भारत' 

साथ ही अपने खूबसूरत होठों पर मनमोहक मुस्कान बिखेरती हूँ। 

उद्घोषिका ने बाद में, मेरा धन्यवाद ज्ञापित करते हुए बताया है कि उनके इस कार्यक्रम की दर्शक संख्या 7.4 करोड़ से ज्यादा रही है।

उसने आशा जताई है कि मेरा टीवी पर दिखाया और मेरी आपबीती का बताया जाना, भीषण आशंकाओं को रोक पाने की दृष्टि से, ज्यादा कारगर होगा।

उद्घोषिका ने यह भी बताया है कि इस तरह की अपीलें, यूँ तो बहुत लोग कर रहे हैं मगर, उन सब के प्रति हमारे लोगों के पूर्वाग्रह हैं, जिससे उसमें विरोध और कमियाँ देखने की सहज प्रवृत्ति के कारण, लाभकारी सलाह और निर्देशों का पालन भी कई वर्ग नहीं कर रहे हैं।

लेकिन आपके प्रति हमारे लोगों में कोई पूर्वाग्रह और विरोध नहीं होने से आपके बताये अनुभव का लाभ हमारा समाज अवश्य लेगा।

मुझे उद्घोषिका से यह सब सुनना संतोष प्रदान कर रहा है।

मुझे अपने पर के अनुग्रह, के अनुरूप, अपने आचरण से, अपने दुःख कम होते लग रहे हैं।

मेरे मन में, यह आशा उत्पन्न हो रही है कि शायद 24 मई 2020, वह दिन होगा, जब भारत यह घोषणा करेगा कि नागरिकों के परस्पर सहयोगी और मानवीय आचरण होने से अत्यंत कम संख्या में जनहानि के बाद हमने कोविड-19 का घातक हो सकने वाला संक्रमण अपने भारत देश से खदेड़ दिया है .... 


 



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