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Diwa Shanker Saraswat

Others

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Diwa Shanker Saraswat

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उल्टे पैरों के भूत

उल्टे पैरों के भूत

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 अचानक रत्ना को होश आया। उसनै खुद को दो अपरिचित लोगों के साथ पाया। शक्ल से दोनों भयानक थे। पर शायद इतने भयानक नहीं थे।


 " कौन हो तुम। और गुरु जी कहाॅ हैं। मैं तुम्हारे पास कैसे।"


 अपरिचित वास्तव में यमदूत थे। उन्हें केवल मृतक की पहचान बतायी जाती। उसके प्राणों को लेकर वह चल देते। यदि दुनिया दारी की बातें लेकर बैठ जायें तो कभी भी अपना काम पूरा न कर पायें।


 " अरे लड़की। अब तुम मर चुकी हो। हम यमदूत तुम्हें लेकर जा रहे हैं। न्याय के देव यमराज के दरबार में आपको लेकर जाया जा रहा है। इससे कोई नहीं बचा। न राजा और न रंक। न तपस्वी और न पापी। सभी को एक न एक दिन संसार छोड़कर जाना होता है।"


 रत्ना की जान में जान आयी। मर तो वह बहुत पहले गयी थी। पर शरीर को ढो रही थी। चलो अच्छा है कि आज वह बोझ भी छूटा। यमदूत भले आदमी लगने लगे।


" आप तो भागते चल रहे हों। भैय्या। मैं इतना तेज नहीं चल पाती। थोड़ी देर बैठ जाऊं। इतना चलने की आदत नहीं है मुझे। "


 देवदूत रत्ना की बात सुनकर मुस्करा दिये। अभी चले ही कितने थे। पर यह लड़की अभी से थक गयी। पर रत्ना की जबान में माधुर्य था। उसपर भाई का संबोधन।


" तुमने हमसे क्या कहा। "


" यही कि थक गयी हूं भैय्या। थोड़ा आराम कर लेने दो। "


 कल्लो और सत्तो यमदूत युगों से यही काम कर रहे थे। जब वह जिंदा थे तो उनसे कुछ भूल हुई थीं। फिर यमलोक में दंड भी मिला। पर दंड पाते पाते कब वे दंडकर्ता के प्रिय बन गये। इस काम के लिये उन्हें नियुक्त कर लिया गया।


 कल्लो याद करने लगा। अब उसकी बहन कहाॅ होगी। न जाने कितने जन्म ले चुकी होगी। बालू के ढेर में एक सुई कब मिलती है। फिर भी वह सही मृतक को ढूंढ लाते। इसमें उनकी कोई बढाई न थी। शरीर छोड़ रहे का सही ठिकाना उन्हें पता रहता। फिर वह कौन है और क्या, कभी न जानते। यदि अपनी मर्जी से सही को ढूंढ पायें तो शायद वह सबसे पहले अपनी बहन को ढूंढेगा। कैसे वह उस दुष्ट सन्यासी की बातों में आ गया था। कैसे उसकी बहन का सम्मान उसी की श्रद्धा की भेंट चढा था। यमलोक में दंड पाकर भी कल्लो खुद को शुद्ध नहीं मानता था। आज भी उसका पाप उसे बैचेन कर देता था।


 रत्ना का उसके लिये भैय्या संबोधन उसे भावुक कर गया।  रत्ना बैठकर संसार को देखने लगी। वह उसका शरीर पड़ा है। सब घर बाले उसे घेरे हुए खड़े हैं। कुछ सन्यासी जैसी वेषभूषा में भी हैं।


......... 


 ". गुरु देव। आप तो कह रहे थे कि रत्ना बिलकुल ठीक हो जायेगी। मेने आपकी बात पर विश्वास किया। रत्ना को डाक्टर को भी नहीं दिखाया। फिर ऐसा क्यों हुआ।" 


 रत्ना के आदमी चंदन की आवाज ज्यादा तेज हो रही थी। 


 " चंपादेवी। समझाओ अपने बेटे को। हमने पूरा प्रयास किया। उस उल्टे पैर बाले भूत को हमने भगा भी दिया था। पर फिर असंख्य भूतों की पलटन का सामना हम नहीं कर पाये। यह देखो। हमारे कपड़े भी फट गये हैं। तुम्हारी बहू के प्राण बचाते बचाते इसका सर भी फूट चुका है।" 


 एक सन्यासी ने अपना सर दिखाया। उससे सचमुच खून निकल रहा था। 


" हमने अपनी जान तक दाव पर लगा दी। और आपका बेटा हमी को दोष दे रहा है। "


" क्षमा करो गुरुदेव। बालक नादान है। "चंपादेवी उनके चरणों में शीश रखकर कह रही थी। 


"अब जल्द से जल्द आपकी बहू का दाह संस्कार करना है । नहीं तो यदि उल्टे पैर बाले भूत इसके शरीर पर अधिकार कर लिये तो कुछ भी संभव नहीं है। "


............. 


 " अब कब तक यहां बैठे रहेंगे। चलना भी है। " सत्तो ने कहा। पर कल्लो कुछ सोच रहा था। यह सब क्या है। आजतक कभी रुके नहीं थे। आज रुके तो कल्लो को लग रहा था कि कुछ वही है जैसा उसकी बहन के साथ हुआ था।


" अभी थोड़ा रुको। "

" स्वामी नाराज होगें।"

"तो फिर से नर्क में डाल देंगें क्या। "

" तू भी कल्लो। कुछ भी कह देता है। हमारा कुछ कर्तव्य भी है।"

". वहीं तो सोच रहा हूँ कि हमारा कुछ कर्तव्य भी तौ है।"


 कल्लो वहीं बैठ गया। सोचने लगा।


" आपकी मृत्यु कैसे हुई है बहन। और यह सब क्या है। "


" अरे कल्लो। तुझे इन सबसे क्या मतलब। "


 सत्तो ने टोका। फिर कल्लो भी गर्म हो गया।


" मतलब है। इन्होंने मुझे भैय्या कहा है। अब मतलब है। बिल्कुल मतलब है। "


रत्ना को भी अपना भाई याद आ गया। कितना प्यार करता है वह मुझसे। उसे तो पता ही नहीं है कि अब मैं अतीत बन चुकी हूं।  वैसे अतीत तो वह पहले ही बन चुकी थी। बीमारी की अवस्था में जब उसका पति डाक्टर को दिखाने जा रहा था तो सास ने टोका।


" अरे। बेबकूफ हुआ है क्या। हमारे घर में डाक्टर का क्या काम। डाक्टर क्या जाने। गुरुदेव तो आधि व्याधि सबका उपाय करते हैं।"


 चंदन को भी गुरु जी पर अपार विश्वास था। खुद की नादानी देख वह झेंप गया।


 " यह क्या पागलपने की बात कर रहे हों। बीमारी का इलाज तो डाक्टर करता है। "


 रत्ना का विरोध करना चंदन को पसद न आया। वैसे पहले भी रत्ना अपने मन की बात खुलकर कहती थी। चंदन भी उसकी बात का मान रखता था। पर उसे गुरु जी के खिलाफ एक शव्द भी सुनना गबारा न था। रत्ना ने विरोध किया। फिर वह हो गया जो नहीं होना चाहिये। चंदन ने भी एक थप्पड़ कसकर मार दिया।  रत्ना झेंप गयी। मायके के हालात ठीक न थे। रत्ना समझ न पायी कि क्या करे। चंदन ने रत्ना पर हाथ तो उठा दिया। पर खुद पछताने लगा। फिर उसने रत्ना को मनाया। देख रत्ना। गुरुदेव चमत्कारी हैं। उनसे कोई भी व्याधि नहीं बच सकती। देख। तुझे चुटकी बजाते ही ठीक कर देंगें। आखिर रत्ना भी मान गयी।


 " चंपादेवी। उल्टे पांव के भूत का साया है तेरी बहू पर। साधना करनी होगी। कुछ दिन यहीं आश्रम में रहो। सब ठीक हो जायेगा।"


 गुरुदेव ने रत्ना के सर पर जल छिड़क दिया। सर्दी के समय अचानक ठंडा पानी पड़ने से रत्ना सिकुड़ गयी।


 " अरे मूर्ख पापी। तू इस बालिका को छोड़ जा। नहीं तेरा वह हाल करूंगा कि तू भी याद रखेगा।"


 जहाँ चंपादेवी व चंदन दोनों रत्ना पर प्रेत व्याधा समझ रहे थे। वहीं रत्ना कुछ भी बता नहीं पा रही थी। फिर अनेकों रात गुरुदेव ने अनुष्ठान किये। हर बार रत्ना बेहोश हो जाती। फिर भी उसे लगता कि अनेकों हाथ उसके शरीर को छू रहे हैं। पर सत्य समझ न पाती। सुबह तक उसे होश आता।


 " सुनियै जी। आप मेरी बात का विश्वास कीजिये। मुझे अनुष्ठान में कुछ समझ नहीं आ रहा। आप डाक्टर को दिखायें या न दिखायें। पर यहाॅ से चलते हैं।"


 " बेबकूफ हो गयी है क्या। यह गुरु जी का अपमान होगा। गुरु जी के क्रोध की ज्वाला में पूरा परिवार मिट जायेगा।"


 पर गुरु जी के लाखों प्रयासों के बाद रत्ना बच न पायी। अनेकों भूतों का मुकाबला करने के लिये अनेकों सन्यासी अनुष्ठान में बैठते। पर रत्ना न बची।


...........


" अच्छा भैय्या। आपने उल्टे पैरों के भूत देखे हैं। आप तो सबको जानते हों। भूतों को, पिशाचों को, डायनो को। सभी को।" रत्ना की बात पर सत्तो मुंह फाड़कर हंसने लगा।


 " भूतों के पैरों से क्या मतलब। भूत तो भूत होते हैं।"


 " पर मुझे तो उस उल्टे पैर बाले भूत से मिलना है। आपने उसे देखा तो होगा। "


 कल्लो उठकर चल दिया। रत्ना को भी चलने का इशारा कर दिया।


" अरे बेबकूफ। उधर किधर जा रहा है। यमलोक तो उस दिशा में है।"


 कल्लो गलत दिशा में चल रहा था। सत्तो ने टोका।


" बिलकुल याद है। पर इस दिशा में उल्टे पैर बाले भूत रहते हैं। उनसे मिल आता हूं। "


.............


 आश्रम में ही चिता तैयार थी। रत्ना का शव उसपर रखा था। अचानक रत्ना जीवित हो गयी। हा हा हा हा कर हसने लगी। चारो तरफ भगदड मच गयी।


 चंदन और चंपादेवी भी डर कर भाग रहे थे। पर सारे रास्तों पर उल्टे पैरो बाले भूत खड़े थे। कोई निकल नहीं पाया।


" सच सच बता पाखंडी। क्या करता था तू मेरे साथ" रत्ना की चीखें सुनकर गुरु और बाकी सन्यासी भी कापने लगे।


 " सच बोल। वर्ना अभी तेरा क्रिया कर्म कर देंगें। तूने उल्टे पैरों के भूतों को बदनाम किया है।"उल्टे पैर के भूत भी बहुत गुस्से में थे। 


 थोड़ी देर में सब स्पष्ट था। चंदन ने पुलिस को फोन कर दिया। पुलिस के आने से पूर्व रत्ना उस शरीर से निकल गयी। बाकी भूत भी पुलिस को दिखाई नहीं दिये। पर पाखंडियों को दिखाई दे रहे थे।


" जब तक तुम्हें सजा नहीं मिल जायेगी। हम तुम्हारे साथ रहेंगे। पुलिस को या अदालत में जरा भी झूठ बोला तो अपना अंत समझना। दंड तो तुझे हम भी दे सकते हैं। पर संसार को भी पता चलना चाहिये कि हम उल्टे पैरों के भूतों से सीधे पैर बाले भूत ज्यादा खतरनाक हैं। सही है ना कल्लो भैय्या।


...........


 रत्ना, कल्लो और सत्तो के साथ चली जा रही थी। पर कुछ उदास थी।


 ". अब क्यों उदास हो बहन।" कल्लो पास आया।


 " कुछ भी नहीं भैय्या। बस यही सोच रही थी कि यमदूतो को भैय्या कह दिया तो वह वास्तव में भैय्या बन गये। पर जिसको गुरु कहा। वह गुरु क्यों नहीं बन पाये।"


 " अच्छा यह बात है। अब भूल जाओ उसको। वास्तव में बड़प्पन वेष में नहीं बल्कि मन में होता है। अब जल्दी चलो। स्वामी नाराज होंगे। पहले ही देर हो चुकी है।


 "अच्छा। एक बात बताओ भैय्या। सुना है कि यमदेव बहुत डरावने लगते हैं। बस यों ही पूछ लिया। रास्ता लंबा है। तो कुछ तो बातें होती रहैं।"


 " तुम भी बहन। अच्छा चलती रहो। रास्ते में ऐसी ही मजेदार बातें करते रहेंगे।" 



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