उलझे बाल
उलझे बाल
अपने उलझे लम्बे बालों को लकड़ी की कंघी से संवार रही थी। छोटे से पहाड़ी तालाब के एकदम किनारे बैठ अपनी टाँगे पसारे नानटी अपनी दादी और माँ की नक़ल कर रही थी। बारह साल की नानटी का असली नाम तो कौशल्या था। पर भाई / बहनों में पाँचवें स्थान पर होने के कारण उसका नाम नानटी यानी छोटी पड़ गया। तीन बड़े भाई और एक बड़ी बहन। नानटी से बड़ा भाई उस से चार साल बड़ा था, सारे भाई / बहनों में ज़्यादा से ज़्यादा बीस महीने का अंतर था उम्र में। नानटी जुगनू की पीठी थी, वो भी चार साल बाद। नानटी के बापू जालमू ( ज़ालिम सिंह ) और माँ नीली ( निर्मला )। पर जालमू और नीली नानटी पर नहीं रुके, नानटी के बाद दो छोटी बहनें और दो छोटे भाई और हो गए। नानटी, छोटी से बीच की हो गयी। नौ भाई बहनों में पाँचवें नम्बर की।
चीड़ के सदाबहार ऊँचे हरे /भरे पेड़ों से भरा जंगल। छोटे / छोटे कांगू, कैंथ, थोर के पेड़। करोंदे, आछ्न्यों और टिम्बर की झाड़ियाँ। तुंग के छोटे / छोटे झाड़ीनुमा पौधे। जंगल की तलहटी पर बना वो छोटा सा तालाब।
“ पता नहीं कैसे ठीक होंगे यह बाल ? एक तो जुएँ इतनी हो गयी। मेरा बस चले तो कटवा दूँ सारे बाल। नानटी चिड़ कर बाल खींचते हुए बोली।
“ लाओ बुआ जी मैं सुलझा दूँ तुम्हारी ज़ुल्फ़ें ” मीरा ने नानटी की चुटकी ली। मीरा नानटी के बड़े ताऊ नितर सिंह की पोती। उम्र में तो नानटी से एक साल बड़ी, पर रिश्ते में भतीजी।
रहने दे, बड़ी आयी बुआ जी, यह कंघी मारूँगी की खींच कर, फिर रोती रहना दिन भर।
“ ला, कंघी मुझे दे। मीरा नानटी के पीछे एक ऊँचा पत्थर रखते हुए बोली। नानटी ने मानो सुना ही नहीं।
दे ! मीरा ने पत्थर पर बैठते हुए उसके हाथ से कंघी छीन ली। फिर धीरे से चुल्लू भर पानी उसके बालों में डाल दिया। गीले बालों में कंघी आसानी ने चलने लगी। मीरा पूरी लगन से उसके बाल संवारती रही। साथ में एक लोक गीत गाने लगी “ फूल माँडना, फूल माँडना, शिमले री सड़कों पर सुले हांडना।" नानटी भी उसके सुर से सुर मिलाने की कोशिश करने लगी। “ पाता पानो रा, पाता पानो रा, पता भी न लग दा बईमानो रा। पहाड़ों से गूँज कर आवाज़ वापिस आ रही थी, मानो ऊपरवाला अपने दो प्यारे बच्चों की आवाज़ से अपनी आवाज़ मिला रहा था। रूहानी नज़ारा था। दो अबोध, पवित्र आत्मायें, दुनियादारी से परे, एक अनजान से तीर्थ स्थान पर मानो देव पूजन कर रहें हों।
“ आह, बाल उखाड़ देगी क्या ? सम्भाल कर। नानटी चिल्लाई।
एक तो इतने घने बाल ऊपर से उलझे हुए, थोड़ा तो सब्र कर। ज़रा सा रह गया है। मीरा चार भाई/ बहनों में सबसे बड़ी थी।शायद इसलिए ज़्यादा समझदार और सब्र वाली थी। “ यह ले हो गया, मीरा नानटी की चोटी गूँधते हुए बोली। और सुन जुएँ नहीं है तेरे बालों में।
चल अब अपनी / अपनी गायें ढूँढ लेते हैं। सूरज ढलने को है। मीरा ने मानो चेताया।
हाँ चल। नानटी उठते हुए बोली। एक बात बोलूँ मीरा ? तू और मैं एक ही गाँव में शादी कर लेंगे, तब बाल बनाने में कोई दिक़्क़त नहीं होगी।
धत, पागल है तू। मीरा ने एक धौल नानटी की पीठ पर धर दिया।
