Surendra kumar singh

Others

5.0  

Surendra kumar singh

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तुम भी न!

तुम भी न!

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"तुम भी न ! तुम भी न खूब हो।प्रेम में इतने डूब गये हो कि दिखायी नहीं पड़ते और कहते हो कि मैं रोमांस कर रहा हूँ।"

"तो इसमें गलत बात क्या है ।मैं प्रेम में हूँ और रोमांस तो चल ही रहा है।रोमांस की बातें होती हैं और खूब होती हैं।तुमको जो सुनाता हूँ वो तो तुम सुन ही रही हो और कोई सुने न सुने ठीक ही है।किसी से क्या लेना लादना मेरे रोमांस से।मैं तो कर ही रह हूँ।"

"अगर मेरे अलावा किसी और को तुम्हारे रोमांस की खबर नहीं होगी तो कहानी कैसे बनेगी।कहानियां तो बनती हैं न रोमांस की।"

"तो ये कहो कि मैं इस तरह से रोमांस करूँ कि लोगों की नजरें पड़े मुझपर।लोग मजे लें मेरे रोमांस की बातें सुन सुनकर और आनन्दित हों मुझे रोमांस करता हुआ देख कर।"

"हाँ हाँ यही तो मैं भी चाहती हूं।रोमांस भीड़ भरे चौराहे पर होना चाहिये।खुलापन से रोमांस की पवित्रता बनी रहती है।छिप छिप कर जो होता है वो रोमांस नही कुछ और होता है।मैं उसे नाम दे सकती हूँ लेकिन उसकी जरूरत नहीं समझती।"

"अरे भाई उन लोगों को तो मेरे रोमांस की खबर है ही जो मुझे जानते हैं।फौजिया,रेशम दास, मेघा,सुनीता,प्रेम रावत ये लोग तो जानते ही हैं मेरे रोमांस को।ऐसा मत समझो कि मेरा रोमांस छिपा हुआ है।धीरे धीरे उसकी चर्चा भी चल रही है और कहानी भी बन रही है।"

"तुम कहते हो तो मान लेती हूँ।वरना ये दुनिया तो दिमाग से चल रही है।अपना दिमाग छोड़कर कोई तुम्हारे रोमांस की कितनी चर्चा कर सकता है ये तो मुझे पता है।"

"तुमपर हालात का गहरा प्रभाव है।आजकल जब कहीं ब्लास्ट होता है तो सारे लोग सक्रिय हो उठते हैं।तुम रोमांस को ब्लास्ट की तरह देखना चाहती हो।शायद इसलिए ठीक ठीक देख नही पा रही हो।"

"ऐसा नहीं है मैं बिल्कुल ठीक ठीक देख रही हूँ और मैं जानती हूँ इसे और दृश्यमान बनाया जा सकता है।अधिक चर्चा की जा सकती है।"

"तो इसमें कोई और क्या कर सकता है।हर आदमी तो उम्मीद लगाए बैठा है।प्रवचन चल रहे हैं।खबरें आ रही हैं।आग जल रही है।धुँआ उठ रहा है। मैं खुद भी अपने रोमांस को एक बिंदु पर केंद्रित करने के उपाय ढूंढ रहा हूँ।"

"पर जो दिखता नही है उसे दिखाओगे कैसे। तुम्हे तो पता अपने रोमांस के बारे में।ये बिल्कुल नये किस्म का है।रोमांस का संसार बदल रहा है।"

"उसने खुद ही कहा है ये नये किस्म का रोमांस है।क्यों कि उसमें मैं हूँ।मुझमें वो है।खुली आंख से न दिखने वाली मैं और दर दर भटकता हुआ बन्द आंखों से सब कुछ देखता हुआ वो। वो यानि तुम। तुमने ठीक ठीक पकड़ा है उसकी बात को।पर मुझे पता है खुली आंख से न दिखने वाली तुम हो।"

सचमुच मेरा रोमांस दिलचस्प है।कभी धर्म से कभी राजनीति से कभी सरकार से,कभी मुझपर नजर रखने वालों से कभी मेरा हित सोचने वालों से,कभी मेरा अनहित करने की सोचने वालों।से मेरा रोमांस चलत रहता है।बिना रुके बिना थके।"

"मेरी दिक्कत इतनी सी है कि मैं सिर्फ तुम्हे जानती हूँ।निकली थी दुनिया देखने मिल गए तुम।जब से मिले हो एक पल के लिए भी मैंने तुम्हें अपनी।आंख से ओझल होने नहीं दिया है।"

"अब मुझे जो करना है उसकी मुश्किलें तो तुम समझ ही रही हो।एक काम तो कर ही दिया तुम्हारा कहा हुआ।दोस्त बना लिया ।उनका नाम बता दिया।देखती रहो यूँ ही जो जो कहे थे वो सब करते हुये।"

"एक बात मेरी समझ लो।तुम्हारे काम के अंदाज को जगह मिलेगी।धर्म तुम्हारा है तो धर्म करो।सरकार तुम्हारी है तो सरकार का काम करो।देश तुम्हारा है तो देश का काम करो।ये मानते हुए कि सब तुम्हारा है और जो कुछ भी तुम कर रहे हो अपने लिये कर रहे हो।"

"यही तो करता रहा हूँ।जब अपना कुछ है ही नही तो अपने लिए क्या करना।इतनी सी गलत फहमी जरूर थी कि सरकार का काम मैं कैसे कर सकता हूँ।करने का एक रास्ता मिल गया है। देश तो अपना था ही सरकार भी हमारी है।धर्म तो अपना था ही।गुरु भी हमारे हैं।"

"बहुत सुंदर रास्ता चुना है तुमने।बस जहां खुद को नहीं समझते हो वहां हो जाओ और वहीं सक्रिय हो जाओ। एक चीज का ध्यान रखो ।कभी कभी तुम जब ब्यस्त होकर अपने काम मे तल्लीन हो जाते हो तो अपने को भूल जाते हो।भूल जाते हो कि तुम पुरुष हो।बोलने लगते हो मैं जा रही हूँ। सुनने वाले क्या कहेंगे तुम्हें।इस तरह की गलतियां कितनी बार की है तुमने कुछ याद है।ध्यान में हमेशा रखोअपनी सक्रियता में कि तुम तुम हो मैं नहीं।तुम पुरुष हो स्त्री नही ।"

"तुम भी न खूब हो।पकड़ रखी हो मुझे।अपना सारा काम मुझसे ले रही हो और कह रही हो कि मुझे महसूस करना चाहिये कि मैं हूँ मैं हूँ। तुम भी न खूब हो।मेरे लिये क्या क्या करती रहती हो। तुम भी न खूब हो।करती हो सब खुद और कहती हो मैं कर रहा हूँ।"


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