टपका जिन्दगी
टपका जिन्दगी
प्राचीन काल में ग्रामीण क्षेत्रों में प्राय : अधिकांश कच्चे खपरैल वाले मकान हुआ करते थे। बरसात के दिनों में बहुत ही परेशानियों का सामना करना पड़ता था तेज हवा पानी होने पर घर की खपरैल यहाँ - वहाँ सरक जाया करती थी वहाँ से पानी टपकने लगता था पहले जमाने में पन्नी जैसी कोई चीज नहीं चलती थी सारे घर में यहाँ - वहाँ टपको के स्थान पर छोटे - बड़े बर्तन रखे रहते थे पानी की बौछार ( फुहार ) से आधे से ज्यादा घर में सीलन आ जाया करती थी जहाँ देखो वही सीलन कुछ कम सीलन वाली जगहों पर रात में बिस्तर खटियों पर बिछाया करते थे।
फिर भी तेज हवा पानी में टपके उन बिस्तरों वाले स्थानों पर भी आ धमकते थे जितना डर शेर का नही उतना डर टपका से लगा करता था कभी यहाँ खाट सरकाना तो कहीं वहाँ खाट सरकाना आधा सा बिस्तर तो टपके गीला ही कर देते थे कभी - कभी तो रात - रात भर टपकों के चक्कर में बिस्तर में बैठकर रात जागकर काटना पड़ती थी इतनी परेशानी के बाद भी लोग हॅसी - खुशी अपना जीवन गुजारते थे उनके चेहरे पर सिकन तक नहीं होती थी। पानी बरसना बंद होने का इंतजार लोग रात - रात भर करा करते थे जब टपके बंद हो तब तो सोया जाए। ऐसी थी टपका जिन्दगी।
शिक्षायें 1. हमें हर परिस्थिति से सामंजस्य बिठाना चाहिए।
2. हँसी - खुशी हर चुनौती का सामना करना चाहिए।
3. प्रकृति से अनुकूलन ही जीवन जीने की सर्वोत्तम कला है।