टीचिंग से बेहतर कुछ नहीं
टीचिंग से बेहतर कुछ नहीं
एम.एस. सी के बाद प्रशासनिक पद पर जाना चाहती थी पर किस्मत में कुछ और ही लिखा था। एक छोटे से आबादी वाले गाँव में प्राइमरी स्कूल में प्रथम नियुक्ति हुई। शहर से सीधा गांव पहुँची।पहले दिन बहुत अजीब लगा ,कि क्या मैं इन छोटे बच्चों को पढ़ा पाऊँगी।
वक्त बीतता गया बच्चों से भला किसे प्यार व लगाव नहीं होगा। मुझे भी अपने स्कूल के बच्चों से बेहद लगाव हो गया। करीब छह महीने बाद मेरी नियुक्ति मिडिल स्कूल में हुई। मुझे जल्द ही ज्वाईन भी करना पड़ा।बड़ा स्कूल ,बड़े बच्चे मुझे मेरे पुराने स्कूल की याद आने लगी।
वक्त बीतता गया मैं बच्चों को पढ़ाती और घर आकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करती। प्रतियोगी परीक्षा में एक दो बार बैठी भी पर लगने लगा कि जहाँ हूँ उसी में फोकस करूँ। एक समय ऐसा आया कि लगने लगा कि टीचिंग से बेहतर नौकरी कुछ भी नहीं क्योंकि एक तो स्कूल की वजह से आप अपना स्कूल कभी नहीं भूल सकते दूसरा कितना भी तनाव जीवन में आये जब बच्चों के बीच पहुँचो तो एक नई ऊर्जा मिलती है। उनका मुस्कुराता चेहरा दिन बेहतरीन बना देता है।
आज मैं गर्व से कह सकती हूँ कि मुझे मेरे काम व मेरी नौकरी से प्यार है।