Priyanka Gupta

Others

4.5  

Priyanka Gupta

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तपस्या -5

तपस्या -5

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निर्मला की एक ननद की शादी चाची ससुर ने की थी । निर्मला को आज तक भी या है कि चाची ससुर कैसे जब देखो ,तब सुनाते रहते थे कि ,"मैंने सुनीता की शादी की । सुनीता की शादी में यह दिया था ;वह दिया था । "


लेकिन निर्मला के सास -ससुर कुछ बोल नहीं पाते थे । निर्मला और रमेश ने तय कर लिया था कि चाचाजी की बेटी की शादी वही लोग करेंगे ताकि चाचाजी की रोज़ -रोज़ सुननी न पड़े । निर्मला कई बार सोचती है कि लोग अगर किसी का करते हैं तो सुनाते क्यों हैं ?इससे अच्छा तो करो ही मत । निर्मला की अम्मा कहती थी कि बार -बार कहने से अच्छे कर्मों का फल नष्ट हो जाता है ।


शामिल का घर अब छोटा पड़ने लगा था । निर्मला के दोनों देवरों की भी शादी करनी थी ।अभी इस घर में सब रेल के डब्बे की तरह फँस -फँस कर रह रहे थे । रमेश को घर खर्च चलाने के साथ -साथ पैसे भी बचाने थे ताकि बहिन -भाइयों की शादी हो सके और गांव में एक घर ले सकें ।


कुछ दिन ससुराल में रहने के बाद निर्मला अपने पति रमेश के साथ शहर आ गयी थी । रमेश और निर्मला ने एक कमरा किराए पर ले लिया था । मकान -मालिक खुद अपने तीन छोटे -छोटे बच्चों के साथ दो कमरों में रहते थे । घर के बाकी दो कमरे उन्होंने किराए पर दे रखे थे । दूसरा कमरा रमेश के ही एक साथी कर्मचारी ने ले रखा था ।


निर्मला के पति के पास खाने -पीने के लिए २-४ बर्तन ही थे; एक गद्दा ,तकिया ,चादर और सर्दियों में ओढ़ने के लिए एक रज़ाई थी ।निर्मला के पति खाना खुद से नहीं बनाते थे ;खाना वह कभी बाहर और कभी अपने किसी साथी के पास खा लेते थे। उन्होंने अपने पति के साथ जाकर एक स्टोव ,एक कढ़ाई और एक परात ख़रीद ली थी ;पति के साथ नयी जगह पर उनकी छोटी सी गृहस्थी शुरू हो गयी थी ।


एक कमरे का छोटा सा घर और दो जने रहने वाले ;निर्मला के पास काम ही कितना होता था ?निर्मला सारा दिन बोर होती रहती थी । उधर उनकी मकान मालकिन ३-३ बच्चों के साथ पूरा दिन जूझते रहती थी । निर्मला ने उनकी कामकाज में मदद करना शुरू कर दिया । कभी वह उनक साथ बैठकर उनक बर्तन सा करवा देती ;कभी सफाई में मदद करवा देती ;कभी बच्चों को रख लेती और कभी खाना बनवा देती । 

जब निर्मला उनके यहाँ खाना बनाती तो मकान मालकिन कहती ,"निर्मला ,अपने और भाईसाहब के लिए स्टोव जलाओगी ;यहीं अपने लिए भी ४ रोटी और सेक लो । सब साथ में ही खा लेंगे । "


अक्सर निर्मला शाम का खाना मकान -मालकिन के पास ही खा लेती थी । मकान -मालकिन के पास सिलाई मशीन भी थी ;निर्मला अपने ब्लाउज आदि खुद सिलती थी । मकान -मालकिन के भी फटे -टूटे कपड़े वह सिल देती थी । एक बार मकान मालकिन ने कहा ,"यहाँ पास में ही एक टेलर की शॉप है ;उससे ट्रैनिंग ले लो ;फिर तुम हर नाप के ब्लाउज बना सकोगी ;थोड़ी बहुत आमदनी भी हो जायेगी ;उसमें कोई बुराई नहीं है । "


"लेकिन ,भाभी जी वह तो सीखने के भी पैसे लेगा न ?",निर्मला ने पूछा ।


"नहीं लेगा ;मैं उससे बात कर लूँगी । वैसे भी तुम्हें मुश्किल से सात -आठ दिन लगेंगे । हाथ में तो तुम्हारे सफ़ाई है ही । ",मकान -मालकिन ने कहा । निर्मला आज भी मकान -मालकिन द्वारा की गयी उसकी मदद को भूली नहीं है ।


निर्मला की गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी । निर्मला अपने पति को पूरा सहयोग कर रह थी । दादी सास और अपनी माँ की सिखाई हुई बातों पर चलते हुए बड़ी किफ़ायत से घर चलाती थी और चार पैसे भी बचा रही थी । निर्मला इसी बीच गर्भवती हो गयी थी । कुछ महीनों बाद निर्मला वापस अपने ससुराल के गांव में आ गयी थी ।

निर्मला ने एक बेटी को जन्म दिया । इतने दिनों बाद घर में कोई छोटा बच्चा हुआ था ;निर्मला की बेटी को सभी लोग बड़े लाड़ से रखते थे । इसी बीच चाचा ससुर वापस काम करने चले गए थे । रमेश ने गांव में एक दूसरा घर खरीद लिया था ;चाचा ससुर कमा रहे थे ;अतः निर्मला का परिवार अपने नए घर में शिफ्ट हो गया । दादी सास दोनों जगह आती -जाती रहती थी । उनका दबदबा अभी भी कायम था । दादी जी की आवाज़ इतनी बुलंद थी कि सब लोग काँपने लग जाते थे ;लेकिन चाची ससुर से तो दादी जी भी डरती थी । पुरुष अपनी पत्नी ,बेटी ,बहिन यहाँ तक कि माँ को भी दबाकर रखता है ।


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